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एस धम्मो सनंतनो
खाना है, यह खयाल नहीं आया।
एक क्वेकर कई वर्ष पहले मेरे पास मेहमान हुआ। तो मैंने उससे सुबह ही पूछा कि चाय लेंगे, दूध लेंगे, कॉफी लेंगे, क्या लेंगे? वह एकदम चौंक गया, जैसे मैंने कोई बड़ी खतरनाक बात कही हो। उसने कहा, क्या आप चाय, दूध कॉफी पीते हैं? जैसे मैंने कोई खून पीने का निमंत्रण दिया हो। मैंने पूछा, तुम...कोई गलती बात हुई? उसने कहा, मैं शाकाहारी हूं, दूध मैं नहीं पी सकता।
क्योंकि क्वेकर मानते हैं, दूध खून है। उनके मानने में भी बात तो है। क्वेकर अंडा खाते हैं, लेकिन दूध नहीं पीते, क्योंकि दूध तो रक्त से ही बनता है। शरीर में सफेद और लाल कण होते हैं खून में। मादा के शरीर से–चाहे गाय हो, चाहे स्त्री हो-सफेद कण अलग हो जाते हैं और दूध बन जाता है। वह आधा खून है। ___ तो उसने इस तरह नाक-भौं सिकोड़ी, कहा कि दूध! आप भी क्या बात कर रहे हैं! अंडा वे खा लेते हैं। क्योंकि अंडा वे कहते हैं कि जब तक अभी जीवन प्रगट नहीं हुआ तब तक कोई पाप नहीं है। ऐसे तो जीवन सभी जगह छिपा है; इसलिए प्रगट और अप्रगट का ही भेद करना उचित है उनके हिसाब से। ऐसे तो जीवन सभी जगह छिपा है।
तुमने एक फल खाया, अगर तुम न खाते और फल रखा रहता, सड़ जाता, तो उसमें कीड़े पड़ते, तो उसमें भी जीवन प्रगट हो जाता। तो जब तक नहीं प्रगट हुआ है तब तक नहीं है। __ मान्यताओं की बातें हैं। चरित्र मान्यताओं से बनता है, संस्कार से बनता है। शील? शील बड़ी अनूठी बात है। शील तुम्हारी मान्यताओं और संस्कारों से नहीं बनता। शील तुम्हारे ध्यान से जन्मता है। इस फर्क को बहुत ठीक से समझ लो। मान्यता, संस्कार, समाज, संस्कृति, नीति की धारणाएं विचार हैं। जो विचार तुम्हें दिए गए हैं, वे तुम्हारे भीतर पकड़ गए हैं। ____ मैं जैन घर में पैदा हुआ। तो बचपन में मुझे कभी रात्रि को भोजन करने का सवाल नहीं उठा। कोई करता ही न था घर में, इसलिए बात ही नहीं थी। मैं पहली दफा पिकनिक पर कुछ हिंदू मित्रों के साथ पहाड़ पर गया। उन्होंने दिन में खाना बनाने की कोई फिकर ही न की। मुझ अकेले के लिए कोई चिंता का कारण भी न था। मैं अपने लिए जोर दूं, यह भी ठीक न मालूम पड़ा।
रात उन्होंने भोजन बनाया। दिनभर पहाड़ का चढ़ाव, दिनभर की थकान, भयंकर मुझे भूख लगी। और रात उन्होंने खाना बनाया। उनके खाने की गंध, वह मुझे आज भी याद है। ऊपर-ऊपर मैंने हां-ना किया कि नहीं, रात कैसे खाना खाऊंगा, लेकिन भीतर तो चाहा कि वे समझा-बुझाकर किसी तरह खिला ही दें। उन्होंने समझा-बुझाकर खिला भी दिया। लेकिन मुझे तत्क्षण वमन हो गया, उलटी हो गई।
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