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________________ जागरण का तेल + प्रेम की बाती - परमात्मा का प्रकाश जिस दिन संसार जागेगा, उस दिन ब्रह्म को पाएगा। अगर मिट्टी का कण भी या पत्थर का टुकड़ा भी जागेगा, तो अपने को जमा हुआ चैतन्य पाएगा। जो जागा उसने परमात्मा को पाया, जो सोया उसने पदार्थ को समझा। पदार्थ सोए हुए आदमी की व्याख्या है परमात्मा की । परमात्मा जागे हुए आदमी का अनुभव है पदार्थ का । पदार्थ और परमात्मा दो नहीं हैं। सोया हुआ आदमी जिसे पदार्थ कहता है, जागा हुआ आदमी उसी को परमात्मा जानता है। दो दृष्टियां हैं। जागा हुआ आदमी जिसे परमात्मा जानता है, सोया हुआ आदमी पदार्थ मानता है। दो दृष्टियां हैं। 'शील की सुगंध सर्वोत्तम है । ' क्योंकि वस्तुतः वह परमात्मा की सुगंध है। शील का क्या अर्थ है ? शील का अर्थ चरित्र नहीं है। इस भेद को समझ लेना जरूरी है, तो ही बुद्ध की व्याख्या में तुम उतर सकोगे। चरित्र का अर्थ है, ऊपर से थोपा गया अनुशासन । शील का अर्थ है, भीतर से आई गंगा | चरित्र का अर्थ है, आदमी के द्वारा बनाई गई नहर । शील का अर्थ है, परमात्मा के द्वार से उतरी गंगा । चरित्र का अर्थ है, जिसका तुम आयोजन करते हो, जिसे तुम सम्हालते हो। सिद्धांत, शास्त्र, समाज तुम्हें एक दृष्टि देते हैं— ऐसे उठो, ऐसे बैठो, ऐसे जीओ, ऐसा करो। तुम्हें भी पक्का पता नहीं है कि तुम जो कर रहे हो वह ठीक है या गलत। अगर तुम गैर-मांसाहारी घर में पैदा हुए तो तुम मांस नहीं खाते, अगर तुम मांसाहारी घर में पैदा हुए तो मांस खाते हो। क्योंकि जो घर की धारणा है, वही तुम्हारा चरित्र बन जाती है। अगर तुम रूस में पैदा हुए तो तुम मंदिर न जाओगे, मस्जिद न जाओगे। तुम कहोगे, परमात्मा ! कहां है परमात्मा ? - राहुल सांकृत्यायन उन्नीस सौ छत्तीस में रूस गए। और उन्होंने एक छोटे स्कूल में - प्राइमरी स्कूल में – एक छोटे बच्चे से जाकर पूछा, ईश्वर है ? उस बच्चे ने कहा, हुआ करता था, अब है नहीं । यूज्ड टू बी, बट नो मोर । ऐसा पहले हुआ करता था, जब लोग अज्ञानी थे— क्रांति के पहले – उन्नीस सौ सत्रह के पहले हुआ करता था। अब नहीं है। ईश्वर मर चुका। आदमी जब अज्ञानी था, तब हुआ करता था। जो हम सुनते हैं, वह मान लेते हैं। संस्कार हमारा चरित्र बन जाता है। पश्चिम में शराब पीना कोई दुश्चरित्रता नहीं है। छोटे-छोटे बच्चे भी पी लेते हैं । सहज है। पूरब में बड़ी दुश्चरित्र बात है । धारणा की बात है 1 कल, परसों ही मैं देख रहा था। जयप्रकाश नारायण के स्वास्थ्य की बुलेटिन रोज निकलती है, वह मैं देख रहा था। तो उन्होंने दो अंडे खाए । कोई सोच भी नहीं सकता, किस भांति के सर्वोदयी हैं ! अहिंसा, सर्वोदय, गांधी के मानने वाले, अंडे ? लेकिन बिहार में चलता है। बिहारी हैं, कोई अड़चन की बात नहीं। कोई जैन सोच भी नहीं सकता कि अहिंसक और अंडे खा सकता है। लेकिन जयप्रकाश को खयाल ही नहीं आया होगा। गांधी और विनोबा के साथ जिंदगी बिताई, लेकिन अंडे नहीं 207
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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