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________________ एस धम्मो सनंतनो कीं। लेकिन मुझे लगा, महावीर के जीवन पर उन्होंने एक भी बात नहीं की। वर्द्धमान की चर्चा की। वर्द्धमान महावीर के जन्म का नाम था । महावीर होने के पहले का नाम था। जब तक जागे न थे, तब तक का नाम था । कहां पैदा हुए, किस घर में पैदा हुए, कौन मां, कौन पिता, कितना बड़ा राज्य, कितने हाथी-घोड़े, इसकी उन्होंने चर्चा की। महावीर की तो बात ही न आई। इस सबसे क्या लेना-देना था ? ऐसे तो बहुत राजकुमार हुए, कौन उनकी याद करता है ? मैं बोला तो मैंने कहा कि मैं तो यहां महावीर पर बोलने आया हूं, वर्द्धमान पर बोलने नहीं । और मैंने कहा, वर्द्धमान और महावीर तो दो अलग-अलग आदमी हैं। मुनि चित्रभानु क्रोध से खड़े हो गए। उन्होंने समझा कि यह कौन नासमझ आ गया, जो कहता है वर्द्धमान और महावीर अलग-अलग आदमी हैं। उन्होंने खड़े होकर कहा, महानुभाव ! मालूम होता है आपको कुछ भी पता नहीं है। महावीर और वर्द्धमान एक ही आदमी हैं। मैं तो हंसा ही, वे जो हजारों लोग थे वे भी हंसे। मैंने उनसे कहा, मुनि महाराज ! जो आपके श्रावक समझ गए वह भी आप नहीं समझ पा रहे हैं। मैंने भी नहीं कहा है कि दो आदमी थे । फिर भी मैं कहता हूं कि दो आदमी थे। वर्द्धमान सोया हुआ आदमी है। जब वर्द्धमान विदा हो जाता है, तभी तो महावीर का आविर्भाव होता है। या जब महावीर का आविर्भाव होता है, तब वर्द्धमान की अर्थी बंध जाती है। वर्द्धमान की बात मत करो। महावीर की बात अलग बात है। तो तुम्हारे भीतर भी कुछ तो मरेगा। तुम मरोगे, जैसा तुमने अभी तक अपने को जाना है। नाम, रूप, परिवार, प्रतिष्ठा, अब तक तुमने अपने जितने तादात्म्य बनाए हैं, वे तो मरेंगे। लेकिन उन सबके मर जाने के बाद पहली बार तुम्हारी आंखें उसकी तरफ खुलेंगी जो तुम्हारे भीतर अमृत है। उस अनाहत नाद को तुम सुनोगे पहली बार, जब तुम्हारी आवाजें और शोरगुल बंद हो जाएगा। जब तुम अपनी बकवास बंद कर दोगे, जब तुम्हारे विचार जा चुके होंगे, जब तुम्हारी भीड़ विदा हो जाएगी, तब अचानक तुम्हारा सन्नाटा बोलेगा, तुम्हारा शून्य अनाहत के नाद से गूंजेगा। जब तुम्हारी दुर्गंध जा चुकी होगी, तभी तुममें परमात्मा की सुगंध का अवतरण होता है। वह छिपी है, पर तुम मौका दो तब फूटे न। तुम जगह दो तब फैले न। कली की छाती पर तुम सवार होकर बैठे हो, पखुड़ियों को खुलने नहीं देते। 'चंदन या तगर, कमल या जूही, इन सभी की सुगंधों से शील की सुगंध सर्वोत्तम है ।' क्यों? क्योंकि चंदन या जूही, तगर या कमल रूप, रंग, आकार के जगत के खेल हैं। रूप के ही सपने हैं, रंग के ही सपने हैं । निराकार का फूल तुम्हारे भीतर खिल सकता है। क्योंकि निराकार का फूल तभी खिलता है जब कोई चैतन्य को उपलब्ध हो। निराकार यानी चैतन्य । आकार यानी तंद्रा, मूर्च्छा । 206
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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