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एस धम्मो सनंतनो
अब मृत्यु के आगे भी ले जा सकोगे। जो जन्म के पहले है, वह मृत्यु के बाद भी साथ जाएगा। शील को उपलब्ध कर लेना इस जगत की सबसे बड़ी क्रांति है। न जाने कौन है गुमराह कौन आगाहे - मंजिल है हजारों कारवां हैं जिंदगी की शाहराहों में
कौन है गुमराह — कौन भटका हुआ है ? कौन आगाहे- मंजिल है — और कौन है जिसे मंजिल का पता है ? हजारों यात्री दल हैं जिंदगी के राजपथ पर । तुम कैसे पहचानोगे? चरित्र के धोखे में मत आ जाना | दुश्चरित्र को तो छोड़ ही देना, चरित्रवान को भी छोड़ देना । शीलवान को खोजना।
ऐसा समझो। एक सूफी फकीर हज की यात्रा को गया । एक महीने का मार्ग था। उस फकीर और उसके शिष्यों ने तय किया कि एक महीने उपवास रखेंगे। पांच-सात दिन ही बीते थे कि एक गांव में पहुंचे, कि गांव के बाहर ही आए थे कि गांव के लोगों ने खबर की कि तुम्हारा एक भक्त गांव में रहता है, उसने अपना मकान, जमीन सब बेच दिया। गरीब आदमी है। तुम आ रहे हो, तुम्हारे स्वागत के लिए उसने पूरे गांव को आमंत्रित किया है भोजन के लिए। सब बेच दिया है ताकि तुम्हारा ठीक से स्वागत कर सके। उसने बड़े मिष्ठान बनाए हैं। फकीर के शिष्यों ने कहा, यह कभी नहीं हो सकता, हम उपवासी हैं, हमने एक महीने का उपवास रखा है । हमने व्रत लिया है, व्रत नहीं टूट सकता। लेकिन फकीर कुछ भी न बोला ।
जब वे गांव में आए और उस भक्त ने उनका स्वागत किया, और फकीर को भोजन के लिए निमंत्रित किया तो वह भोजन करने बैठ गया। शिष्य तो बड़े हैरान हुए कि यह किस तरह का गुरु है ? जरा से भोजन के पीछे व्रत को तोड़ रहा है ! भूल गया कसम, भूल गया प्रतिज्ञा कि एक महीने उपवास करेंगे। यह क्या मामला है ? लेकिन जब गुरु ने ही इंकार नहीं किया तो शिष्य भी इंकार न कर सके। करना चाहते थे।
समारोह पूरा हुआ, रात जब विश्राम को गए तो शिष्यों ने गुरु को घेर लिया और कहा कि यह क्या है ? क्या आप भूल गए ? या आप पतित हो गए?
उस गुरु ने कहा, पागलो ! प्रेम से बड़ी कहीं कोई तीर्थयात्रा है ? और इसने इतने प्रेम से, अपनी सब जमीन-जायदाद बेचकर, सब लुटाकर - गरीब आदमी है — भोजन का आयोजन किया, उसे इंकार करना परमात्मा को ही इंकार करना हो जाता। क्योंकि प्रेम को इंकार करना परमात्मा को इंकार करना है। रही उपवास की बात, तो क्या फिकर है, सात दिन आगे कर लेंगे। एक महीने का उपवास करना है न? एक महीने का उपवास कर लेंगे। और अगर कोई दंड तुम सोचते हो, तो दंड भी जोड़ लो। एक महीने दस दिन का कर लेंगे। जल्दी क्या है ? और मैं तुमसे कहता हूं कि तुम्हारी यह अकड़ कि हमने व्रत लिया है और हम अब भोजन न कर सकेंगे, अहंकार की अकड़ है। यह प्रेम की और धर्म की विनम्रता नहीं ।
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