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________________ प्रार्थना : प्रेम की पराकाष्ठा गुनाह गिन-गिन के मैं क्यों अपने दिल को छोटा करूं सुना है तेरे करम का कोई हिसाब नहीं परमात्मा का हृदय अगर बड़ा है, अगर परमात्मा की करुणा अपार है, तो हम अपने मन को क्यों छोटा करें। भक्त पाप-माप की फिकर नहीं करता। इसका यह मतलब नहीं है कि पाप करता है। भक्त परमात्मा में ऐसा लीन हो जाता है कि पाप होते नहीं। जिसने परमात्मा को इतने हृदय से याद किया हो, उससे पाप कैसे होंगे? इसे तुम समझ लो। भक्त पाप छोड़ता नहीं। परमात्मा को पकड़ता है, पाप छूट जाते हैं। साधक पाप छोड़ता है। पाप के छूटने से परमात्मा को पाता है। साधक को चेष्टा करनी पड़ती है, रत्ती-रत्ती। साधक संघर्ष है, संकल्प है। भक्त समर्पण है। भक्त कहता है, तेरी करुणा इतनी अपार है कि हम क्यों नाहक दीन हुए जाएं कि यह भूल हो गई, वह भूल हो गई? तू भी कहीं इन भूलों की फिकर करेगा! हमारी भूलों का तू हिसाब रखेगा? हम इतने छोटे हैं कि बड़ी भूलें भी तो हमसे नहीं होती। - तुमने कौन सी बड़ी भूल की, जरा सोचो। और अगर परमात्मा हिसाब रखता हो, तो परमात्मा न हुआ कोई दुकानदार हो गया। तुम्हारी भूलें भी क्या हैं? क्या भूलें की हैं तमने? भक्त तो कहता है, अगर की भी होगी, तो तूने ही करवायी होगी। तेरी कोई मर्जी रही होगी। 'भक्त तो यह कहता है कि यह भी खूब मजा है! तूने ही बनाया जैसा हमें-अब हमसे भूलें हो रही हैं, और सजा हमको, यह भी खूब मजा है! यह भी खूब रही! बनाए तू, करवाए तू, फंस जाएं हम! भक्त अपने को बीच में नहीं लेता। वह कहता है, तेरा काम, तू जान। तूने बनाया जैसा बनाया, जो करवाया, वह हुआ। हम तेरे हैं, अब तू ही समझ। भक्त का ढंग और ! साधक कहता है, भूलें हो गयीं, एक-एक भूल को काटना है, सुधारना है। तो तुम अपना मार्ग चुन लो एक दफा। फिर बार-बार यह मत पूछो कि मैंने भक्त का मार्ग चुन लिया, अब मैं होश भी साधना चाहता हूं। फिर बात गलत हो जाएगी। कि मैंने भक्त का मार्ग चुन लिया, अब मुझे योगासन भी करने हैं। नाचने वाले को कहां फुर्सत योगासन करने की! और क्या मजा है योगासन का, जिसको नाचना आ गया! और नाच से बड़ा कहीं कोई योगासन है? योगासन का अर्थ होता है, जहां हम उससे मिलकर एक हो जाएं। नाच से बड़ा कहीं कोई योगासन है? क्योंकि नाच से बड़ा कहां कौन सा योग है ? नृत्य महायोग है। पर वह भक्त की बात है। अगर भक्त का मार्ग चुन लिया तो भूलो...बुद्ध को भूल जाने से कोई अड़चन न होगी और बुद्ध कुछ नाराज न होंगे। जब तुम मंजिल पर पहुंचोगे, उनका आशीर्वाद भी तुम्हें मिलेगा ही कि तुम आ गए, और मुझे छोड़कर भी आ गए। 195
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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