SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो अल्लाह भी मिल जाता है। क्योंकि ये सब नाम उसी के हैं। लेकिन तुम बैठकर इन सभी नामों की माला मत बनाना। लीनता और भक्ति के साधक को जरूरत ही क्या है बुद्ध की? बुद्ध जानें, उनका काम जाने। लीनता और भक्ति का साधक लीनता और भक्ति में डूबे। ऐसी अड़चनें क्यों खड़ी करना चाहते हो? __ क्योंकि ध्यान रखना, मंजिल एक है, मार्ग अनेक हैं। तुम अगर सभी मार्गों पर एक साथ चलना चाहो, पागल हो जाओगे। चलोगे तो एक ही मार्ग पर, यद्यपि सभी मार्ग उसी मंजिल पर पहुंचा देते हैं। लेकिन अगर तुम्हें बंबई जाना हो, तो तुम एक ही मार्ग चुनोगे। अगर तुमने सभी मार्ग चुन लिए, तो दो कदम इस मार्ग पर चलोगे, दो कदम उस मार्ग पर चलोगे, चार कदम किसी और मार्ग पर चलोगे, तुम पहुंचोगे कैसे? एक ही मार्ग पर चलोगे तो पहुंचोगे। भक्त की दुनिया अलग है। भक्त के देखने के ढंग अलग हैं। भक्त के तौर-तरीके अलग हैं। भक्त की जीवन-शैली अलग है। साधक की जीवन-शैली अलग है। साधक होश को साधता है। होश से ही मस्ती को पाता है। भक्त मस्ती को साधता है। मस्ती से ही होश को पाता है। जबाने-होश से ये कुफ्र सरजद हो नहीं सकता मैं कैसे बिन पिए ले लूं खुदा का नाम है साकी भक्त की बड़ी अलग दुनिया है। वह कहता है, हम तो खुदा का नाम भी लेंगे तो बिना पीए नहीं ले सकते। खुदा का नाम है, कोई साधारण बात है कि बिना पीए ले लें! मस्ती में ही लेंगे। होश में खुदा का नाम लें? बात जमती नहीं। डूबकर लेंगे। पागल होकर लेंगे। जबाने-होश से ये कुफ्र सरजद हो नहीं सकता भक्त कहता है कि मेरी जबान से ये पाप मैं न कर सकूँगा। मैं कैसे बिन पिए ले लूं खुदा का नाम है साकी पीकर ही लूंगा। नाचकर लूंगा। मस्ती में सराबोर करके लूंगा। होश से खुदा का नाम? तो बुद्धि पर ही अटक जाएगा। लड़खड़ाते कदमों से लूंगा। पांव पड़ें कित के किती-सहजो ने कहा है। झूमते हुए लेंगे। सम्हलकर और खुदा का नाम? वह नाम खुदा का ही न रहा फिर। भक्त की दुनिया बड़ी अलग है। गुनाह गिन-गिन के मैं क्यों अपने दिल को छोटा करूं सुना है तेरे करम का कोई हिसाब नहीं तेरी कृपा का कोई अंत नहीं, हम काहे को छोटा मन करें गिन-गिनकर अपने पापों को, कि यह भूल की, वह भूल की। यह तो तेरे संबंध में शिकायत हो जाएगी। भक्त कहता है, हम अपनी भूलों और पापों का हिसाब रखें? 104
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy