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प्रार्थना : प्रेम की पराकाष्ठा
बात गौण है। कौन जाने किसी और पर आ जाए, तो फिर तुम्हारा मार्ग वहीं से हो जाएगा। जिसके पास जाकर तुम्हें पूछने का सवाल न उठे कि कहां ले चले हो, चल पड़ने को तैयार हो जाओ। अंधेरे में जाता हो वह तो अंधेरे में, और नर्क में जाता हो तो नर्क में। जहां तुम्हारे मन में ये संदेह और सवाल न उठते हों, यही आखिरी मंजिल है, यही आखिरी इम्तहां है।
सितारों के आगे जहां और भी हैं
अभी इश्क के इम्तहां और भी हैं और आखिरी इम्तहान इश्क का यही है कि प्रेम इतना अनन्य हो, श्रद्धा इतनी अपूर्व हो कि श्रद्धा ही नाव बन जाए, कि प्रेम ही बचा ले। मार्ग नहीं पहुंचाता, श्रद्धा पहुंचाती है। मंजिल कहीं दूर थोड़े ही है। जिसने प्रेम किया, उसने अपने भीतर पा ली।
पांचवां प्रश्नः
लीनता व भक्ति के साधक को बुद्ध के होश की और अप्प दीपो भव की बातों के प्रति क्या रुख रखना चाहिए?
जरूरत क्या है ? तुम्हें सभी के प्रति रुख रखने की जरूरत क्या है? तुम
- अपनी श्रद्धा का बिंदु चुन लो, शेष सब को भूल जाओ। तुम्हें कोई सारे बुद्धों के प्रति श्रद्धा थोड़े ही रखनी है। एक पर तो रख लो। सब पर रखने में तो तुम बड़ी झंझट में पड़ जाओगे। एक पर ही इतनी मुश्किल है, सब पर तुम कैसे रख सकोगे? तुम एक मंदिर को तो मंदिर बना लो; सब मस्जिद, सब गुरुद्वारे, सब शिवालय, उनकी तुम चिंता में मत पड़ो। क्योंकि जिसका एक मंदिर मंदिर बन गया, वह एक दिन अचानक पा लेता है कि सभी मस्जिदों में, सभी गुरुद्वारों में वही मंदिर है। एक सिद्ध हो जाए, सब सिद्ध हो जाता है।
और अगर तुमने यह चेष्टा की कि मैं सभी में श्रद्धा रखू, तुम्हारे पास श्रद्धा इतनी कहां है? इतना बांटोगे, रत्ती-रत्ती श्रद्धा हो जाएगी। अगर अल्लाह को पुकारना हो तो पूरे प्राणों से अल्लाह को ही पुकार लो। अल्ला ईश्वर तेरे नाम-इस तरह की बकवास में मत पड़ना। क्योंकि तब न तुम्हारे राम में बल होगा और न तुम्हारे अल्लाह में बल होगा। यह राजनीतिक बातचीत हो सकती है, धर्म का इससे कुछ लेना-देना नहीं। अल्लाह को ही तुम परिपूर्ण प्राणों से पुकार लो, तुम अल्लाह में ही छिपे राम को किसी दिन पहचान लोगे। अल्लाह ही जब पूरी त्वरा और तीव्रता से पुकारा जाता है, तो राम भी मिल जाते हैं। राम जब पूरी त्वरा से पुकारा जाता है, तो
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