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एस धम्मो सनंतनो
जाओ, अगर गुरु पर पूरा भरोसा है, शिष्यों ने ही। वह चला गया भीतर। मकान तो जलकर राख हो गया। जब वे भीतर गए तो आशा थी कि वह भी जलकर राख हो चुका होगा। वह तो वहां ऐसे बैठा था, जल में कमलवत। आग ने छुआ ही नहीं। उन्होंने सुनी थीं अब तक ये बातें कि ऐसे लोग भी हुए हैं-जल में कमलवत, पानी में होते हैं और पानी नहीं छूता। आज जो देखा, वह अदभुत चमत्कार था! आग में था और आग ने भी न छुआ। पानी न छुए, समझ में आता है!
अब संयोग कहना जरा मुश्किल मालूम पड़ा। गुरु के पास ये खबरें पहुंचीं। गुरु को भी भरोसा न आया, क्योंकि गुरु खुद ही इतनी श्रद्धा का आदमी न था। गुरु ने सोचा कि संयोग ही हो सकता है, क्योंकि मेरे नाम से हो जाए! अभी तो मुझे ही भरोसा नहीं कि अगर मैं जलते मकान में जाऊं तो बचकर लौटूंगा, कि मैं कूद पडूं पहाड़ से और कोई हाथ मुझे सम्हाल लेंगे अज्ञात के। तो गुरु ने कहा कि देखेंगे। ___ एक दिन नदी के तट से सब गुजरते थे। गुरु ने कहा कि तुझे मुझ पर इतना भरोसा है कि आग में बच गया, पहाड़ में बच गया, तू नदी पर चल जा। वह शिष्य चल पड़ा। नदी ने उसे न डुबाया। वह नदी पर ऐसा चला जैसे जमीन पर चल रहा हो। गुरु को लगा कि निश्चित ही मेरे नाम का चमत्कार है। अहंकार भयंकर हो गया। कुछ था तो नहीं पास।
तो उसने सोचा, जब मेरा नाम लेकर कोई चल गया, तो मैं तो चल.ही जाऊंगा। वह चला, पहले ही कदम पर डुबकी खा गया। किसी तरह बचाया गया। उसने पूछा कि यह मामला क्या है? मैं खुद डूब गया! वह शिष्य हंसने लगा। उसने कहा, मुझे
आप पर श्रद्धा है, आपको अपने पर नहीं। श्रद्धा बचाती है। __कभी-कभी ऐसा भी हुआ है कि जिन पर तुमने श्रद्धा की उनमें कुछ भी न था, फिर भी श्रद्धा ने बचाया। और कभी-कभी ऐसा भी हुआ है, जिन पर तुमने श्रद्धा न की उनके पास सब कुछ था, लेकिन अश्रद्धा ने डुबाया है। कभी बुद्धों के पास भी लोग संदेह करते रहे और डूब गए। और कभी इस तरह के पाखंडियों के पास भी लोगों ने श्रद्धा की और पहुंच गए। ____ तो मैं तुमसे कहता हूं, गुरु नहीं पहुंचाता, श्रद्धा पहुंचाती है। इसलिए मैं तुमसे कहता हूं, श्रद्धा ही गुरु है। और जहां तुम्हारी श्रद्धा की आंख पड़ जाए, वहीं गुरु पैदा हो जाए। परमात्मा नहीं पहुंचाता, प्रार्थना पहुंचाती है। और जहां हृदयपूर्वक प्रार्थना हो जाए वहीं परमात्मा मौजूद हो जाता है। मंदिर नहीं पहुंचाते, भाव पहुंचाते हैं। जहां भाव है वहां मंदिर है।
मत पूछो कि कहां ले चला हूं। चलने की हिम्मत हो, साथ हो जाओ। चलने की हिम्मत न हो, नाहक समय खराब मत करो, भाग खड़े होओ। ऐसे आदमी के पास नहीं रहना चाहिए जिस पर भरोसा न हो। कहीं और खोजो। शायद किसी और पर भरोसा आ जाए। क्योंकि असली सवाल भरोसे का है! किस पर आता है, यह
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