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________________ प्रार्थना : प्रेम की पराकाष्ठा सितारों के आगे का अर्थ ही यही होता है जहां तक दिखाई पड़ता है, उसके आगे। सितारों का मतलब है, जहां तक दिखाई पड़ता है। सितारों के आगे जहां और भी हैं इसका मतलब इतना ही है कि कुछ दिखाई नहीं पड़ता, ये आंखें थक जाती हैं। इन आंखों की सीमा आ जाती है। सितारों के आगे जहां और भी हैं अभी इश्क के इम्तहां और भी हैं इश्क का इम्तहान क्या है? वही, जहां नहीं दिखाई पड़ता वहां भी किसी के ऊपर भरोसा। जहां नहीं दिखाई पड़ता वहां भी श्रद्धा। जहां नहीं दिखाई पड़ता वहां भी चलने का साहस। तुम जिसे संदेह कहते हो, गौर से खोजना, कहीं वह सिर्फ कायरता तो नहीं है! कहीं डर तो नहीं है, कहीं भय तो नहीं है कि कहीं लूट न लिए जाएं! कहीं ऐसा तो नहीं है कि कैसे पक्का करें, कौन लुटेरा है, कौन मार्गदर्शक है! लेकिन इसकी फिकर छोड़ो, पहले यह सोचो, तुम्हारे पास लुट जाने को है भी क्या? तुम पहले ही लुट चुके हो। संसार से बड़ा और लुटेरा अब तुम्हें कहां मिलेगा? संसार ने तो रत्ती-रत्ती, पाई-पाई भी लूट लिया है। एक सिफर हो, एक शून्यमात्र रह गए हो। आंकड़ा तो एक भी नहीं बचा है भीतर। कुछ भी नहीं है पास, फिर भी डरे हो कि कहीं लुट न जाओ। ___ यह जो तुम पूछते हो-कहां ले चले हो बता दो मुसाफिर, यह भय के कारण, कायरता के कारण, साहस की कमी के कारण। लेकिन तुम जहां भी चलते रहे हो अब तक, अगर वहां से ऊब गए हो, तो अब खतरा क्या है? किसी नए मार्ग को खोजकर देख लो। असली सवाल साहस का है। साधारणतः लोग सोचते हैं, श्रद्धालु लोग डरपोक हैं, कायर हैं। और मैं तुमसे कहता हूं, श्रद्धा इस जगत में सबसे बड़ा दुस्साहस है। . ऐसा हुआ कि तिब्बत का एक फकीर अपने गुरु के पास गया। गुरु की बड़ी ख्याति थी। और यह फकीर बड़ा श्रद्धालु था। और गुरु जो भी कहता, सदा मानने को तैयार था। इसकी प्रतिष्ठा बढ़ने लगी। और शिष्यों को पीड़ा हुई। उन्होंने एक दिन इससे छुटकारा पाने के लिए एक पहाड़ी के ऊपर बैठे थे—इससे कहा कि अगर तुम्हें गुरु में पूरी श्रद्धा है तो कूद जाओ। तो वह कूद गया। उन्होंने तो पक्का माना कि हुआ खतम। नीचे जाकर देखा तो वह पद्मासन में बैठा था। और ऐसा सौंदर्य और ऐसी सुगंध उन्होंने कभी किसी व्यक्ति के पास न देखी थी, जो उसके चारों तरफ बरस रही थी। वे तो बड़े हैरान हुए। सोचा संयोग है। संदेह ज्यादा से ज्यादा संयोग तक पहुंच सकता है, कि संयोग की बात है कि बच गया। कोई फिकर नहीं। एक मकान में आग लगी थी, उन्होंने कहा कि चले 191
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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