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एस धम्मो सनंतनो
लेकिन अगर बुद्ध को चुना है, तो फिर छोड़ दो भक्त की बात। __कहीं ऐसा न हो कि ये तुम्हारे मन की तरकीबें हों कि तुम जो चुनते हो वह करना नहीं है, तो दूसरे को बीच में ले आते हो, ताकि अड़चन खड़ी हो जाए, दुविधा बन जाए। दुविधा बन जाए, तो करें कैसे?
बुद्ध को चुन लिया, पर्याप्त हैं बुद्ध। किसी की कोई जरूरत नहीं। फिर मीरा और चैतन्य को भूल जाओ। फिर कृष्ण को बीच में लाओ ही मत। बुद्ध काफी हैं। यह इलाज पर्याप्त है। उनकी चिकित्सा पूरी है। उसमें किसी और को जोड़ने की कोई जरूरत नहीं।
लेकिन वह ढंग और, वह दुनिया और! वहां एक-एक भूल को काटना है। होश को साधना है। संकल्प को प्रगाढ़ करना है। अपने को निखारना है, शुद्ध करना है। तुम जब निखर जाओगे, शुद्ध हो जाओगे, तब परमात्मा तुममें उतरेगा।
भक्त परमात्मा को बुला लेता है और कहता है, तुम आ जाओ, मुझसे तो क्या निखरेगा, मुझसे क्या सुधरेगा। तुम आ जाओगे, तुम्हारी मौजूदगी ही निखार देगी,
सुधार देगी। ___दोनों तरह से लोग पहुंचे हैं। मेरे लिए कोई चुनाव नहीं है। दोनों बिलकुल ठीक हैं। तुम अपनी प्रकृति के अनुकूल मार्ग को चुन लो। अगर तुम समर्पण कर सकते हो, तो भक्ति। अगर तुम समर्पण न कर सकते हो, समर्पण में तुम्हारा रस न हो, अनुकूल न पड़ता हो, तो फिर योग, तप, ध्यान।।
ध्यान उनके लिए, जो प्रेम में डूबने से घबड़ाते हों। प्रार्थना उनके लिए, जो प्रेम में डूबने को तत्पर हों। ध्यान में विचार को काटना है। प्रेम में विचार को समर्पित करना है। दोनों स्थिति में विचार चला जाता है। ध्यानी काटता है, प्रेमी परमात्मा के चरणों में रख देता है कि तुम सम्हालो।
आखिरी प्रश्नः
कल आए थे प्रभु मेरे घर मैं सो रही थी बेखबर कौन से कर्मों के फल हैं प्रेमसागर आप आए और मैं खड़ी रही बाहर
जीवन जैसे-जैसे थोड़ा-थोड़ा झुकेगा, जैसे-जैसे अहंकार थोड़ा-थोड़ा
गलेगा, वैसे-वैसे अंधेरी से अंधेरी रात में भी उसकी बिजलियां कौंधनी शुरू हो जाती हैं। तुम झुके नहीं कि उसका आना शुरू हुआ नहीं। तुम्हीं बाधा
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