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प्रार्थना : प्रेम की पराकाष्ठा
असली काम वही है। उसी क्षण असली काम शुरू होगा जिस दिन तुम मुझे देखोगे।
तुम मुखातिब भी हो करीब भी हो
तुमको देखू कि तुमसे बात करूं कब तक तुम मुझसे बात करते रहोगे? देखो अब। और तैयारी का कोई अर्थ नहीं है। बात होती है बुद्धि से। देखना होता है हृदय से। जब तुम देखते हो, तो आंखों के पीछे हृदय आ जाता है। जब तुम बात करते हो, तो आंखों के पीछे बुद्धि आ जाती है। बुद्धि यानी तुम्हारे विचार करने का यंत्र। हृदय यानी तुम्हारे प्रेम करने का यंत्र। देखना एक प्रेम की घटना है। और अगर प्रेम से नहीं देखा, तो क्या खाक देखा! जब आंख से प्रेम उंडलता हो तभी देखना घटता है। ___मैं तुम्हारे सामने भी हूं, तुमसे बात भी कर रहा हूं। अब यह तुम्हारे ऊपर है, तुम अपने से पूछ लो
तुम मुखातिब भी हो करीब भी हो
__तुमको देखू कि तुमसे बात करूं - बात तुम करते रहो जन्मों-जन्मों तक, बात से बात निकलती रहेगी। बात मैं करता रहूंगा, बात करने में कहीं कोई अड़चन है ? बात से सरल कहीं कोई और बात है? लेकिन यह सिर्फ बहाना था। बहाना था कि शायद इसी बीच किसी दिन खिलौनों से खेलते-खेलते तुम आंख उठाकर देख लो। खिलौनों में उलझे होने के कारण मन तो खिलौनों में उलझा रह जाए, और तुम्हारी आंख मुझे मिल जाए। बुद्धि शब्दों में उलझी तो, उलझी रहे, कभी किसी क्षण में रंध्र मिल जाए, थोड़ी जगह मिल जाए,
और तुम झांककर मेरी तरफ देख लो। उसी क्षण घटना घट सकती है। मैं देने को तैयार हूं, तुम जिस दिन लेने को तैयार होओगे।
चौथा प्रश्न:
कहां ले चले हो बता दो मुसाफिर सितारों से आगे ये कैसा जहां है वो क्या इश्क के बाकी इम्तहां हैं
प छो मत, चलो। पछना भी बद्धि की होशियारी है। प्रेम के मार्ग पर भी बुद्धि
पूछती है, कहां ले चले हो? और प्रेम के मार्ग पर बुद्धि चल नहीं सकती। और बुद्धि अगर पूछती रहे, तो तुम्हें भी न चलने देगी। कभी तो इतना साहस करो, कि चलो चलते हैं। पूछेगे नहीं। यही तो प्रेम का लक्षण है।
अगर मुझसे प्रेम है तो पूछने की कोई जरूरत नहीं, चल पड़ो। पूछना प्रेम के
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