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________________ एस धम्मो सनंतनो है। । अपना सारा धूल जमाए हुए है। कोई भी चीज आती है, बुद्धि उसके रंग को बदल देती है। तब तुम सुन पाते हो, पर वह सुनना धोखा हो गया। फिर बाढ़ की सी स्थिति बनती है। वहीं तैयारी चूक गई। मैं तुमसे कहता हूं, इसी क्षण घटना घट सकती है, यदि तुम तैयार हो। तैयार का क्या अर्थ ? तैयार का इतना ही अर्थ, अगर तुम अपनी बुद्धि को किनारे रख देने को तैयार हो। अगर तुम कहते हो, ठीक है, हो जाए साक्षात्कार सीधा-सीधा । आएं हमारे दिल में दिल से ही मिलाएंगे यह बीच में भूमिका बांधने के लिए बुद्धि न होगी । परिचय करवाने के लिए बुद्धि न होगी तो अभी इसी घड़ी घटना घट सकती है। धर्म के लिए ठहरने की कोई जरूरत ही नहीं । उसका कल से कुछ लेना-देना नहीं । आज हो सकता है। धर्म सदा नगद है, उधार नहीं । कल का कोई आश्वासन नहीं देता मैं तुम्हें। अभी हो सकता है, इसी क्षण हो सकता है। कल का तो तुम्हें वे ही आश्वासन देते हैं जो तुम्हारी बुद्धि को ही अपील कर रहे हैं, तुम्हारी बुद्धि को ही निमंत्रण दे रहे हैं। मैंने तुम्हारी बुद्धि को कोई निमंत्रण नहीं दिया है, तुम्हें बुलाया है। जिस दिन भी तुम आओगे बुद्धि को अलग रखकर, किनारे हटाकर, उसी क्षण मिलन संभव है। तुम मुखातिब भी हो करीब भी हो तुमको देखूं कि तुमसे बात करूं तुम यहां बैठे हो, मैं यहां बैठा हूंतुम मुखातिब भी हो करीब भी हो तुमको देखूं कि तुमसे बात करूं अगर तुमने मुझसे बात की, चूके। अगर तुमने मुझे देखा, पाया। यहां मैं तुमसे बोल भी रहा हूं और यहां हूं भी। बोलना सिर्फ बहाना है। बोलना तो सिर्फ तुम्हें बुलाना है। बोलना तो सिर्फ यह है कि खाली तुम न बैठ सकोगे मेरे पास इतनी देर । रोज-रोज खाली बैठने को तुम न आ सकोगे। उतनी समझ की तुमसे अपेक्षा नहीं । अगर मैं चुप हो जाऊंगा, तुम धीरे-धीरे छंटते चले जाओगे। तुम कहोगे खाली ही वहां बैठना है, तो अपने घर ही बैठ लेंगे। घर भी तुम न बैठोगे, क्योंकि तुम कहोगे खाली बैठने से क्या सार? इतना समय तो धन में रूपांतरित हो सकता है। कुछ कमा लेंगे, कुछ कर लेंगे। मैं तुमसे बोल रहा हूं, ताकि तुम्हें उलझाए रखूं। ऐसे ही जैसे छोटा बच्चा ऊधम कर रहा हो, खिलौना दे देते हैं। खिलौने से खेलता रहता है, उतनी देर कम से कम शांत रहता है। तुमसे बात करता हूं, शब्द तो खिलौने हैं। थोड़ी देर तुम खेलते रहो, शायद खेलने में मन तल्लीन हो जाए, ठहर जाओ तुम थोड़ी देर मेरे पास । शायद तुम आंख उठाकर देखो और मैं तुम्हें दिखाई पड़ जाऊं। असली सवाल वही है, 188
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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