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________________ प्रार्थना : प्रेम की पराकाष्ठा रो-रोआं सिहर उठता है। और हृदय में बाढ़ सी आ जाती है।' बाढ़ सी? सावधान, बाढ़ सी से बचना। बाढ़ चाहिए। 'और एक शिखर-अनुभव की सी स्थिति बन जाती है।' शिखर-अनुभव की सी? सावधान, यह झूठा सिक्का है! मन के एक स्वभाव को समझ लो। तुम जो चाहते हो, मन उसकी प्रतिमाएं बना देता है। वह कहता है, यह लो, हाजिर है। दिनभर तुम भूखे रहे, रात सपना देखते हो कि सुस्वादु भोजन कर रहे हो। मन कहता है, दिनभर भूखे रहे, यह लो भोजन हाजिर है। लेकिन रात तुम कितना ही सुस्वादु भोजन करो, पेट न भरेगा। हालांकि नींद सम्हल जाएगी। भूखे रहते तो नींद लगना मुश्किल होती। सपने ने कहा, यह लो भोजन, मजे से कर लो और सो जाओ। तुमने सपने में भोजन कर लिया, सो गए। ___ तुमने कभी खयाल किया, नींद में प्यास लगी है, गर्मी की रात है, शरीर ने बहुत पसीना छोड़ दिया है, नींद में प्यास लग गई है। अब डर है, अगर प्यास बढ़ जाए तो नींद टूट जाए। तो मन कहता है, उठो। उठे तुम सपने में, गए रेफ्रिजरेटर के पास, सपने में ही कोकाकोला पी लिया, लौटकर अपने बिस्तर पर सो गए। निश्चित अब। मन ने धोखा दे दिया। प्यास अपनी जगह है। न तुम उठे, न तुम गए कहीं; बस एक स्वप्न, एक बाढ़ सी-कोकाकोला सा; नींद सम्हल गई, करवट लेकर तुम सोए रहे। सुबह पता चलेगा कि अरे, प्यासे रातभर पड़े रहे! स्वप्न का काम है निद्रा की रक्षा। कहीं नींद टूट न जाए, तो स्वप्न का इंतजाम है। स्वप्न सुरक्षा है। नींद को नहीं टूटने देता। सब तरह से बचाता है। और धोखा पैदा हो जाता है। कम से कम नींद में तो काम चल जाता है। सुबह जागोगे, तब पता चलेगा। जिस दिन जागोगे उस दिन सोचोगे बाढ़ सी? किस धोखे में रहे, किस सपने में खो गए? इन बातों का भरोसा मत करो। इससे एक बात साफ है कि जो भी मैं कहता हूं, तुम्हारी बुद्धि उसकी छानबीन करती है, फिर तुम्हारे भीतर जाता है। तुम्हारी बुद्धि पहरेदार की तरह खड़ी है। जो मैं कहता हूं, बुद्धि पहले परीक्षण करती है उसका, फिर भीतर जाने देती है। परीक्षण ही करे तो भी ठीक है। उसका रंग-रूप भी बदल देती है। अतीत के अनुकूल बना देती है। बुद्धि यानी तुम्हारा अतीत। जो तुमने अब तक जाना है, अनुभव किया है, पढ़ा है, सुना है, उस सबका संग्रह। तो तुमसे कोई नई बात कही ही नहीं जा सकती। और मैं तुमसे नई ही बात करने की जिद्द किए बैठा हूं। तुम वही सुन सकते हो जो पुराना है, मैं तुमसे वही कहने की जिद्द किए बैठा हूं कि जो नया है। जो नितनूतन है वही सनातन है। जो प्रतिपल नया है वही सनातन है। जो कभी पुराना नहीं हो सकता वही पुरातन है। लेकिन तुम्हारी बुद्धि वहां बैठी 187
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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