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एस धम्मो सनंतनो
लीला देख, बाहर आ! राबिया खिलखिलाकर हंसी और उसने कहा, हसन ! तुम ही भीतर आ जाओ। क्योंकि हम उसे ही देख रहे हैं जिसने सुबह बनाई, जिसने सूरज को जन्म दिया, जिसके किरणों के जाल को देखकर तुम प्रसन्न हो रहे हो, भीतर आओ, हम उसे ही देख रहे हैं।
कान वो कान है जिसने तेरी आवाज सुनी आंख वो आंख है जिसने तेरा जलवा देखा
तीसरा प्रश्नः
भगवान, आप अपने प्रवचनों में प्रतिदिन ऐसी तात्कालिकता पैदा कर देते हैं कि रो-रोआं सिहर उठता है। और हृदय में बाढ़ सी आ जाती है और एक शिखर-अनुभव की सी स्थिति बन जाती है। फिर आप कहते हैं कि यदि हम तैयार हों, तो घटना इसी क्षण घट सकती है। कृपया इस तैयारी को कुछ और स्पष्ट करें।
फिर से प्रश्न को पढ़ देता हूं, क्योंकि प्रश्न में ही उत्तर छिपा है।
'आप अपने प्रवचनों में प्रतिदिन ऐसी तात्कालिकता पैदा कर देते हैं कि रो-रोआं सिहर उठता है और हृदय में बाढ़ सी आ जाती है।'
बाढ़ नहीं आती, बाढ़ सी! 'और एक शिखर-अनुभव की सी स्थिति बन जाती है।' शिखर नहीं, शिखर की सी। वहीं उत्तर है। वहीं तैयारी चूक रही है।
बुद्धि झूठे सिक्के बनाने में बड़ी कुशल है। बाढ़ की सी स्थिति बना देती है। बाढ़ का आना और है। बाढ़ के आते तो फिर हो गई घटना! लेकिन बाढ़ की सी स्थिति से नहीं होगी। यह तो ऐसा ही है जैसे तट पर बैठे हैं, नदी में तो बाढ़ नहीं आती, सोच लेते हैं, एक सपना देख लेते हैं, एक ख्वाब देखा कि बाढ़ की सी स्थिति आ गई। फिर आंख खोलकर देखी कि गांव अपनी जगह है-न गांव डूबा, न कुछ बहा–नदी अपनी जगह है। बाढ़ की सी स्थिति आई और गई। कूड़ा-करकट वहीं का वहीं पड़ा है, कुछ भी बहा न। कुछ ताजा न हुआ, कुछ नया न हुआ। ___ मैं जब बोल रहा हूं तो दो तरह की संभावनाएं बन सकती हैं। तुम मुझे अगर बुद्धि से सुनो, तो ज्यादा से ज्यादा बाढ़ की सी स्थिति बनेगी। बुद्धि बड़ी कुशल है। और बुद्धि, तुम जो चाहो उसी का सपना देखने लगती है।
बुद्धि से मत सुनो। कृपा करो, बुद्धि को जरा बीच से हटाओ। सीधे-सीधे होने
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