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प्रार्थना : प्रेम की पराकाष्ठा
पराकाष्ठा है। वह तो प्रेम का आखिरी निचोड़ है, आखिरी सार है । 'कुछ दिल ने कहा ? कुछ भी नहीं
कुछ दिल ने सुना? कुछ भी नहीं
ऐसे भी बातें होती हैं ? ऐसे ही बातें होती हैं !'
वहां भीतर ऐसी ही तरंगें चलती रहती हैं। वहां हां और ना में फासला नहीं । वहां हां भी कभी ना होता है, ना भी कभी हां होता है। वहां सब विरोध लीन हो जाते एक में। उत्तर में मैं तुमसे कहना चाहूंगा
कान वो कान है जिसने तेरी आवाज सुनी आंख वो आंख है जिसने तेरा जलवा देखा
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जब तक कान आदमियों की ही बात सुनते रहे, जब तक कान वही सुनते रहे जो बाहर से आता है, जब तक कान आहत नाद को सुनते रहे - जिसकी चोट पड़ती है कान पर और कान के पर्दों पर झन्नाहट होती है - तब तक कान कान ही नहीं । और जब तक आंखों ने वही देखा जो बाहर से आकर प्रतिबिंब बनाता है, तब तक उधार ही देखा । तब तक सत्य का कोई अनुभव न हुआ। तब तक सपना ही देखा । जब कानों ने वह सुना जो भीतर से उमगता है, जो भीतर से उठता है, जो भीतर से भरता है, तभी कान कान हैं। और जब आंखों ने वह देखा जो आंखें देख ही नहीं सकतीं, जब आंखों ने वह देखा जो आंख बंद करके दिखाई पड़ता है, जब आंखें अपने पर लौटीं, स्वयं को देखा, तभी आंखें आंखें हैं।
कान वो कान है जिसने तेरी आवाज सुनी
आंख वो आंख है जिसने तेरा जलवा देखा
सरको । भीतर की तरफ चलो। थोड़ी अपने से पहचान करें। संसार की बहुत पहचान हुई। बहुत परिचय बनाए, कोई काम नहीं आते। बहुत संग-साथ किया, अकेलापन मिटता नहीं। भीड़ में खड़े हो, अकेले हो बिलकुल । ऐसे भी लोग हैं जो जिंदगीभर भीड़ में रहते हैं और अकेले ही रह जाते हैं। और ऐसे भी लोग हैं जो अकेले ही रहे और क्षणभर को भी अकेले नहीं । जिन्होंने भीतर कीं आवाज सुन ली उनका अकेलापन समाप्त हो गया। उन्हें एकांत उपलब्ध हुआ । जिन्होंने भीतर के दर्शन कर लिए, उनके सब सपने खो गए। सपनों की कोई जरूरत न रही। सत्य को देख लिया, फिर कुछ और देखने को नहीं बचता ।
राबिया. अपने घर में बैठी थी। हसन नाम का फकीर उसके घर मेहमान था । सुबह का सूरज निकला, हसन बाहर गया। बड़ी सुंदर सुबह थी । आकाश में रंगीन बादल तैरते थे और सूरज ने सब तरफ किरणों का जाल फैलाया था । हसन ने चिल्लाकर कहा, राबिया ! भीतर बैठी क्या करती है ? बाहर आ, बड़ी सुंदर सुबह है। परमात्मा ने बड़ी सुंदर सुबह को पैदा किया है। और आकाश में बड़े रंगीन बादल तैरते हैं। पक्षियों के गीत भी हैं। किरणों का जाल भी है। सब अनूठा है । स्रष्टा की
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