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एस धम्मो सनंतनो
कुछ दिल ने सुना? कुछ भी नहीं ऐसे भी बातें होती हैं? ऐसे ही बातें होती हैं!'
दिल को सुनने की कला सीखनी पड़ेगी। अगर पुरानी आदतों से ही सुना, जिस ढंग से मन को सुना था, बुद्धि को सुना था, अगर उसी ढंग से सुना, तो तुम हृदय की भाषा न समझ पाओगे। वह भाषा भाव की है। उस भाषा में शब्द नहीं हैं, संवेग हैं। उस भाषा में शब्दकोश से तुम कुछ भी सहायता न ले सकोगे। उस.भाषा में तो जीवन के कोश से ही सहायता लेनी पड़ेगी। __ और इसीलिए अक्सर लोग हृदय के करीब जाने से डर जाते हैं। क्योंकि हृदय के पास जाते ऐसा लगता है, जैसे पागल हुए जाते हैं। सब साफ-सुथरापन नष्ट हो जाता है। ऐसा ही समझो कि विराट जंगल है जीवन का, और तुमने एक छोटे से. आंगन को साफ-सुथरा कर लिया है-काट दिए झाड़-झंखाड़, दीवालें बना ली हैं। अपने आंगन में तुम सुनिश्चित हो। जरा आंगन से बाहर निकलो, तो जंगल की विराटता घबड़ाती है। वहां खो जाने का डर है। वहां कोई राजपथ नहीं। पगडंडियां भी नहीं हैं, राजपथ तो बहुत दूर।
उस विराट बीहड़ जंगल में, जीवन के जंगल में तो तुम चलो, जितना चलो उतना ही रास्ता बनता है। चलने से रास्ता बनता है। चलने के लिए कोई रास्ता तैयार नहीं है। रेडीमेड वहां कुछ भी नहीं है। इसलिए आदमी डरता है, लौट आता है अपने
आंगन में। यही तो अड़चन है। बुद्धि तुम्हारा आंगन है, जहां सब साफ-सुथरा है, जहां गणित ठीक बैठ जाता है।
प्लेटो ने अपनी अकादमी, अपने स्कूल के द्वार पर लिख रखा था-जो गणित न जानता हो, वह भीतर न आए। प्लेटो यह कह रहा है, जिसने बुद्धि की भाषा न सीखी हो, वह यहां भीतर न आए।
मेरे द्वार पर भी लिखा है कुछ। प्लेटो तो लिख सकता है, क्योंकि बुद्धि के पास शब्द हैं, मैं लिख नहीं सकता। लेकिन मेरे द्वार पर भी लिखा है कि जो हृदय की भाषा न समझता हो, वह भीतर न आए। क्योंकि यहां हम उस जगत की ही बात कर रहे हैं, जिसकी कोई बात नहीं हो सकती। यहां हम उसी तरफ जाने की चेष्टा में संलग्न हैं, जहां जाना अपने को मिटाने जैसा है। जहां केवल वे ही पहुंचते हैं जो अपने को खोने को तत्पर होते हैं। तो डर लगेगा। __ इसीलिए तो लोग प्रेम से भयभीत हो गए हैं। प्रेम की बात करते हैं, प्रेम करते नहीं। बात खोपड़ी से हो जाती है। करना हो, तो जीवन के बीहड़ जंगल में प्रवेश करना होता है। खतरे ही खतरे हैं। प्रेम के संबंध में लोग सुनते हैं, समझते हैं, गीत गाते हैं, कथाएं पढ़ते हैं, प्रेम करते नहीं। क्योंकि प्रेम करने का अर्थ, अपने को मिटाना। अहंकार खो जाए, तो ही प्रेम का अंकुरण होता है। और जिसने प्रेम ही न जाना—जिस अभागे ने प्रेम ही न जाना—वह प्रार्थना कैसे जानेगा। वह तो प्रेम की
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