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प्रार्थना : प्रेम की पराकाष्ठा
दो बात हृदय की हृदय से। बद्धि से सनते हो तब...तब तरंगें बद्धि में उठती हैं। लेकिन बुद्धि की तरंगें तो पानी में खींची गई लकीरों जैसी हैं-बन भी नहीं पाती
और मिट जाती हैं। बुद्धि का भी कोई भरोसा है! विचार क्षणभर नहीं ठहरते और चले जाते हैं। आए भी नहीं कि गए। बुद्धि तो मुसाफिरखाना है। वहां कोई घर बनाकर कभी रहा है? रेल्वे स्टेशन का प्रतीक्षालय है। यात्री आते हैं, जाते हैं। वहां तुम्हारे जीवन में कोई शाश्वत का नाद न बजेगा। एस धम्मो सनंतनो।
उस सनातन का बुद्धि से कोई संबंध न हो पाएगा। बुद्धि क्षणभंगुर है। पानी के बबूले हैं—बने, मिटे। उनमें तुम घर मत बसाना। कभी-कभी पानी के बबूलों में भी सूरज की किरणों का प्रभाव ऐसे रंग दे देता है, इंद्रधनुष छा जाते हैं। मेरी बात तुम सुनते हो। बुद्धि सुनती है, तरंगायित हो जाती है, बाढ़ की सी स्थिति बन जाती है। एक सपना तुम देखते हो। फिर उठे, गए, बाढ़ चली गई। तुम जहां थे वहीं के वहीं रह गए। कूड़ा-करकट भी न बहा, तुम्हें पूरा बहा ले जाने की तो बात ही दूर! शायद तुम और भी मजबूत होकर जम गए। क्योंकि एक बाढ़, तुम्हें लगा आई और चली गई, और तुम्हारा कुछ भी न बिगाड़ पाई। ऐसे तो तुम रोज सपने देखते रहो बाढ़ों के, कुछ भी न होगा।
बुद्धि को हटा दो। जब सुनते हो तो बस सुनो, विचारो मत। सुनना काफी है, विचारना बाधा है। मैं तुमसे यह नहीं कह रहा हूं कि मैं जो कहता हूं उसे मान लो। क्योंकि वह मानना भी बुद्धि का है। मानना बुद्धि का, न मानना बुद्धि का। स्वीकार करना बुद्धि का, अस्वीकार करना बुद्धि का। मैं तुमसे यह नहीं कहता कि जो मैं तुमसे कह रहा हूं उसे तुम मान लो। न मैं तुमसे कहता हूं न मानो, न कहता हूं मानो। मैं तो कहता हूं सिर्फ सुन लो। सोचो मत। बुद्धि को कह दो, तू चुप! ___तुम मुझे ऐसे ही सुनो जैसे अगर पक्षी कोई गीत गाता हो, उसे सुनते हो। तब तो बुद्धि कोई काम नहीं कर सकती। यद्यपि वहां भी थोड़े अपने हाथ फैलाती है। थोड़े झपट्टे मारती है। कहती है बड़ा सुंदर है। कल सुना था वैसा ही गीत है। यह कौन सा पक्षी गा रहा है? थोड़े-बहुत हाथ मारती है, लेकिन ज्यादा नहीं। क्योंकि पक्षी की भाषा तुम नहीं समझते। ____ मैं तुमसे कहता हूं, मेरी भाषा भी तुम समझते मालूम पड़ते हो, समझते नहीं। क्योंकि जो मैं बोल रहा है, वही मैं बोल नहीं रहा हूं। जो मैं तुम्हें कहता हुआ सुनाई पड़ रहा हूं, उससे कुछ ज्यादा तुम्हें देना चाहता हूं। शब्दों के साथ-साथ शब्दों की पोटलियों में बहुत शून्य बांधा है। स्वरों के साथ-साथ उनके पीछे-पीछे बहुत सन्नाटा भी भेजा है। जो कह रहा हूं वही नहीं, अनकहा भी कहे हुए के पीछे-पीछे छिपा आ रहा है।
__ तुम अगर बुद्धि से ही सुनोगे, तो जो मैंने कहा वही सुनोगे, अनकहे से वंचित रह जाओगे। जो कहा ही नहीं जा सकता, उससे तुम वंचित रह जाओगे। बाढ़ उससे
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