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एस धम्मो सनंतनो
अवाक हो गए हैं! ठगे रह गए हैं! मीरा तो नाच भी सकी, थोड़ी राहत मिली होगी। आनंद भी जब सघन हो जाए, तो कुछ करो तो राहत मिल जाती है। बुद्ध पी गए। पूरा आनंद पी गए। अगर कोई मुझसे पूछे, तो बुद्ध का नशा मीरा से भी ज्यादा है। मीरा को तो कम से कम नाचने की खबर रही। बुद्ध को उतनी खबर भी न रही।
ध्यान रखना, जब मैं मीरा, या बुद्ध, या किन्हीं और की बात करता हूं, तो ये बातें तुलनात्मक नहीं हैं, कंपेरेटिव नहीं हैं। मैं किसी को छोटा-बड़ा नहीं कह रहा हूं। मैं तो सिर्फ तुम्हें समझाने के लिए बात ले रहा हूं। तुम्हें बुद्ध समझ में आ जाएं, तो तुम्हें उमर खैयाम भी समझ में आ जाएगा।
फिट्जराल्ड ने, जिसने उमर खैयाम का अंग्रेजी में अनुवाद किया, उमर खैयाम को बरबाद कर दिया। क्योंकि सारी दुनिया ने फिट्जराल्ड के बहाने ही, उसी के मार्ग से, उसी के निमित्त से उमर खैयाम को जाना। और सारी दुनिया ने यही समझा कि यह शराब की चर्चा है, यह मयखाने की चर्चा है। यह मयखाने की चर्चा नहीं है, शराब की चर्चा नहीं है, यह मंदिर की बात है।
कुछ अपनी करामात दिखा ऐ साकी जो खोल दे आंख वो पिला ऐ साकी होशियार को दीवाना बनाया भी तो क्या
दीवाने को होशियार बना ऐ साकी बुद्ध ने ऐसी ही शराब ढाली, जिसमें दीवाने होशियार बन जाते हैं। वही उनका अप्रमाद योग है। वही उनकी जागरण की कला है। लेकिन मैं इसको फिर-फिर शरोब कहता हूं। क्योंकि मैं चाहता हूं, तुम यह न भूल जाओ कि यह रूखी-सूखी जीवन स्थिति नहीं है, बड़ी हरी-भरी है। यह रेगिस्तान नहीं है, मरूद्यान है। यहां फूल खिलते हैं, पक्षी चहचहाते हैं। यहां चांद-तारे घूमते हैं। यहां गीतों का जन्म होता है। यहां रोएं-रोएं में, जरें-जरे में अज्ञात की प्रतिध्वनि सुनी जाती है। यहां मंदिर की घंटियों का नाद है और मंदिर में जलती धूप की सुगंध है। बुद्ध नीरस नहीं बैठे हैं। हीरा सम्हालकर बैठे हैं।
कबीर ने कहा है, हीरा पायो गांठ गठियायो।
तुम ऊपर ही ऊपर मत देखते रहना, गांठ ही दिखाई पड़ती है। भीतर हीरे को गठियाकर बैठे हैं। हिलते भी नहीं, इतना बड़ा हीरा है। कंपित भी नहीं होते, इतना बड़ा हीरा है। इतनी बड़ी संपदा मिली है कि धन्यवाद देना भी ओछा पड़ जाएगा। छोटा पड़ेगा। अहोभाव भी प्रगट क्या करें! अहोभाव प्रगट करने वाला भी खो गया है। कौन धन्यवाद दे, कौन अनुग्रह की बात करे, कौन उत्सव मनाए!
मैं तुमसे यह कह रहा हूं कि ऐसे उत्सव भी हैं जब उत्सव भी ओछा पड़ जाता है। इसलिए जानकर ही बात कर रहा हूं। जब कभी उमर खैयाम की तुमसे बात करूंगा, तो बुद्ध की भी बात करूंगा। क्योंकि न तो उमर खैयाम समझा जा सकता
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