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________________ प्रार्थना : प्रेम की पराकाष्ठा मैं तुमसे कहता हूं, ऐसे भी नाच हैं जो दिखाई नहीं पड़ते। और मैं तुमसे यह भी कहता हूं कि नाच की एक ऐसी आखिरी स्थिति भी है, जहां सब थिर हो जाता है। ऐसा भी नाच है, जहां कंपन नहीं होता । किसी और उदाहरण से समझें जो तुम्हारी समझ में आ जाए। क्योंकि यह बात तो बेबूझ हो जाएगी, पहेली बन जाएगी। कोई मर जाता है प्रियजन, तो तुमने आंखों से आंसू बहाते लोग देखे हैं। कभी तुमने उस दुख की घड़ी को भी देखा है जब आंसू भी नहीं बहते। ऐसे भी दुख हैं। दुख की आत्यंतिक ऐसी भी गहराई है कि आंख से आंसू भी नहीं बहते, मुंह से आह भी नहीं निकलती । दुख इतना गहन हो जाता है कि आंसू बहाना भी दुख की बेइज्जती मालूम होगी। दुख इतना गहन हो जाता है कि रोना भी व्यर्थ मालूम होगा। रोते भी वे हैं, जिनके दुख में अभी थोड़ी सुख की सुविधा है। जिनका दुख पूरा नहीं है। रोते भी वे हैं, जिनके दुख ने अभी आखिरी तक नहीं छू लिया है। हृदय के आखिरी कोर तक को नहीं भिगो दिया है। चिल्लाते भी वे हैं, जिनका दुख स्थूल है। तुमने कभी ऐसी घड़ी जरूर देखी होगी, कि दुख महान हुआ, दुख इतना बड़ा था कि तुम सम्हाल न पाए, आंखें भी सम्हाल न पायीं, आंसू भी सम्हाल न पाए, सब सन्नाटा हो गया। आघात इतना गहरा था कि कंपन ही न हुआ । • मनोवैज्ञानिक कहते हैं, अगर ऐसी घड़ी हो तो किसी भी तरह उस व्यक्ति को रुलाने की चेष्टा करनी चाहिए, अन्यथा वह मर भी जा सकता है। किसी भांति उसे हिलाओ, रुलाओ, उसकी आंखों में किसी भांति आंसू ले आओ, ताकि आघात हल्का हो जाए, ताकि आघात बह जाए, ताकि दुख आंसुओं से निकल जाए और भीतर राहत आ जाए। तुम दुख के कारण रोते हो, या दुख से छुटकारा पाने के कारण रोते हो? तुम दुख के कारण रोते हो, या दुख से राहत पाने के लिए रोते हो ? दुख जब सघन होता है, तो आवाज भी नहीं उठती। दिल जब सच में ही टूट जाता है, तो आवाज भी नहीं उठती । ی ठीक इससे विपरीत अब तुम समझ सकोगे। मीरा नाचती है। अभी नाच सकती है, इसलिए। अभी नाच इतना गहरा नहीं गया है। अभी लीनता और समाधि की दशा इतनी गहरी नहीं गई है जहां नाच भी खो जाए। ऐसे भी नाच हैं जहां नाच भी खो जाता है। ऐसे भी दुख हैं जहां आंसू भी नहीं होते। बुद्ध भी नाच रहे हैं, लेकिन बड़ा सूक्ष्म है यह नृत्य । यह इतना सूक्ष्म है कि स्थूल आंखें न पकड़ पाएंगी । इसे तो केवल वे ही देख पाएंगे जिन्होंने ऐसा नाच जीया हो, जाना हो । मैं तुमसे कहता हूं, बुद्ध नाच रहे हैं। अन्यथा हो ही नहीं सकता। मैं तुमसे कहता हूं, बुद्ध ने पी ली वह शराब, जिसकी मैं बात कर रहा हूं। आनंद इतना सघन है, 179
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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