SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो तुम बेहोश हो। शराब तो तुमने पी ही रखी है। संसार की शराब। किसी ने धन की शराब पी रखी है और धन में बेहोश है। किसी ने पद की शराब पी रखी है और पद में बेहोश है। किसी ने यश की शराब पी रखी है। जिनको न पद, यश, धन की शराब मिली, वे सस्ती शराब मयखानों में पी रहे हैं। वे हारे हुए शराबी हैं। और बड़ा मजा तो यह है कि बड़े शराबी छोटे शराबियों के खिलाफ हैं। जो दिल्ली में पदों पर बैठे हैं, वे छोटे-छोटे मयखानों में लोगों को शराब नहीं पीने देते। उन्होंने खुद भी शराब पी रखी है। लेकिन उनकी शराब सूक्ष्म है। उनका नशा बोतलों में बंद नहीं मिलता। उनका नशा बारीक है। उनके नशे को देखने के लिए बड़ी गहरी आंख चाहिए। उनका नशा स्थूल नहीं है। राह पर तुमने शराबी को डगमगाते देखा, राजनेता को डगमगाते नहीं देखा? राह में तुमने शराबी को गिर जाते देखा, धनी के पैर तुमने डगमगाते नहीं देखे? शराबी को ऊलजलूल बकते देखा, पदधारियों को ऊलजलूल बकते नहीं देखा? तो फिर तुमने कुछ देखा नहीं। संसार में आंख बंद करके जी रहे हो। बहुत तरह की शराबें हैं। संसार शराब है। उमर खैयाम, सूफी या भक्त जिस शराब की बात कर रहे हैं, वह ऐसी शराब है जो संसार के नशे को तोड़ दे। जो तुम्हें जगा दे। परमात्मा की शराब का लक्षण है जागरण। इसलिए बुद्ध और उमर खैयाम की बातों में फर्क नहीं है। जानकर ही बुद्ध के साथ इन मस्तानों की भी बात कर रहा हूं। क्योंकि अगर तुम्हें फर्क दिखाई पड़ता रहा, तो न तो तुम बुद्ध को समझ सकोगे और न इन दीवानों को। जब इन दोनों में तुम्हें कोई फर्क न दिखाई पड़ेगा, तभी तुम समझोगे। परमात्मा का भी एक नशा है। लेकिन नशा ऐसा है कि और सब नशे तोड़ देता है। नशा ऐसा है कि तुम्हारी नींद ही तोड़ देता है। नशा ऐसा है कि जागरण की एक अहर्निश धारा बहने लगती है। फिर भी उसे नशा क्यों कहें? तुम पूछोगे। जब होश आता है, तो नशा क्यों कहें? नशा इसलिए है कि होश तो आता है, मस्ती नहीं जाती। होश तो आता है, मस्ती बढ़ जाती है। और ऐसा होश भी क्या जो मस्ती भी छीन ले! फिर तो मरुस्थल का हो जाएगा होश। फिर तो रूखा-सूखा होगा। फिर तो हरियाली न होगी, फूल न खिलेंगे, और पक्षी गीत न गाएंगे, और झरने न बहेंगे, और आकाश के तारों में सौंदर्य न होगा। या तो तुम उमर खैयाम को समझ लेते हो कि यह किसी साधारण शराब की प्रशंसा कर रहा है, और या तुम समझ लेते हो कि बुद्ध मस्ती के खिलाफ हैं। दोनों नासमझियां हैं। बुद्ध मस्ती के खिलाफ नहीं हैं। बुद्ध से ज्यादा मस्त आदमी तुम कहां पाओगे? तुम कहोगे, यह जरा अड़चन की बात है। बुद्ध को किसी ने कभी नाचते नहीं देखा। मीरा नाचती है, चैतन्य नाचते हैं। बुद्ध को कब किसने नाचते देखा? पर 178
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy