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प्रार्थना : प्रेम की पराकाष्ठा
'पहला प्रश्नः
बुद्ध बातें करते हैं होश की, जागने की, और आप बीच-बीच में मस्ती, नशा, शराब और लीनता की बातें भी उठाया करते हैं। बुद्ध पर बोलते समय विपरीत की चर्चा क्यों आवश्यक है? कृपया समझाएं।
द्र ष्टि न हो, तो विपरीत दिखाई पड़ता है। दृष्टि हो, तो जस भी विपरीत दिखाई न
- पड़ेगा। जिसको बुद्ध होश कहते हैं, उसी को सूफियों ने बेहोशी कहा। जिसको बुद्ध अप्रमाद कहते हैं, उसी को भक्तों ने शराब कहा। बुद्ध के वचनों में और उमर खैयाम में इंचभर का फासला नहीं। बुद्ध ने जिसे मंदिर कहा है, उसी को उमर खैयाम ने मधुशाला कहा। बुद्ध तो समझे ही नहीं गए, उमर खैयाम भी समझा नहीं गया। उमर खैयाम को लोगों ने समझा कि शराब की प्रशंसा कर रहा है।
कुछ अपनी करामात दिखा ऐ साकी जो खोल दे आंख वो पिला ऐ साकी होशियार को दीवाना बनाया भी तो क्या दीवाने को होशियार बना ऐ साकी
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