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________________ एस धम्मो सनंतनो जीवन में सत्य का आविष्कार करना है, प्रेम का आविष्कार करना है। जीवन में तुम कौन हो इसका आविष्कार करना है। इसे ऐसी ही नहीं गंवा देना है। तो तुम्हारे जीवन में धीरे-धीरे अनुशासन आना शुरू हो जाए। अगर तुम्हारे पास कुछ भी-थोड़ी सी भी-दृष्टि हो, दिशा हो कहां पहुंचना है, तो एक तारतम्य आ जाए। उस तारतम्य के साथ ही साथ तुम्हारे भीतर एकता का जन्म होगा। इस एकता के माध्यम से ही किसी दिन तुम माला बन सकते हो। और जिस दिन तुम माला बन जाते हो, उस दिन परमात्मा के गले में चढ़ाने नहीं जाना होता। परमात्मा का गला खुद तुम्हारी माला में आ जाता है। आ ही जाएगा। तुम काबिल हो गए। काबले-इल्तिफात तू ही नहीं तभी तक अड़चन थी। उनसे शिकवा फजूल है सीमाब शिकायत बेकार है। इतना ही जानना कि अभी हम तैयार नहीं हुए। अब यह फूलों की गठरी को तुम किसी के गले में डालना चाहोगे तो माला कैसे बनेगी? गिर जाएंगे फूल नीचे, धूल में पड़ जाएंगे। यह माला किसी के गले में डालनी हो तो माला होनी चाहिए। फूलों के ढेर को माला मत समझ लेना। थोड़ा देखो, माला और ढेर में क्या फर्क है? ढेर में संगठन नहीं है, अर्थात आत्मा नहीं है। माला में एक संगठन है, एक व्यक्तित्व है, एक आत्मा है। धागा दिखाई नहीं पड़ता। एक फूल से दूसरे फूल में चुपचाप अदृश्य में पिरोया हुआ है। जीवन के लक्ष्य भी दिखाई नहीं पड़ते। एक क्षण से दूसरे क्षण में अदृश्य पिरोए होते हैं। बुद्ध उठते हैं, बैठते हैं, चलते हैं, तो हर घड़ी के भीतर ध्यान का धागा पिरोया हुआ है। जो भी करते हैं, एक बात ध्यान रखते ही हैं कि उस करने में से ध्यान का धागा न छूटे। वह धागा बना रहे। . फूल से भी ज्यादा मूल्य धागे का है, लक्ष्य का है, दिशा का है। और जिस दिन यह घड़ी घट जाती है कि तुम संगठित हो जाते हो, तुम एक हो जाते हो, उसी दिन-उसी दिन परमात्मा की कृपा तुम पर बरस उठती है। उसे कुछ कहने की जरूरत नहीं है। इसलिए बुद्ध उस संबंध में चुप रहे हैं। जो कहा जा सकता था, उन्होंने कहा। जो नहीं कहा जा सकता था, उन्होंने नहीं कहा। उन्होंने सारा जोर इस पर दिया है कि तुम्हारा व्यक्तित्व कैसे एक हो जाए। तुम्हारा ज्ञान कैसे आचरण बन जाए। तुम्हारे बिखरे फूल कैसे माला बन जाएं। इससे ज्यादा उन्होंने बात नहीं की, क्योंकि इसके बाद बात करनी ठीक ही नहीं है। इसके बाद जो होना है वह होता ही है। वह हो ही जाता है। उसमें कभी कोई अड़चन नहीं पड़ती। इसलिए परमात्मा को तुम भूल जाओ तो अड़चन नहीं है। अपने को मत भूल जाना। अपने को भूला, तो सब गया, सब डूबा। खुद की याद रखी और उसी 172
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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