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प्रार्थना स्वयं मंजिल
जल
याददाश्त को रोज-रोज सम्हालते गए, रोज-रोज हर तरह से वह याददाश्त सघन होती चली जाए, जैसे जल गिरता है पहाड़ से - और चट्टान मजबूत है, बिलकुल नाजुक है— लेकिन रोज गिरता ही चला जाता है। एक दिन चट्टान तो रेत होकर बह जाती है, जल की धार अपनी जगह बनी रहती है।
कठोर से कठोर भी टूट जाता है सातत्य के सामने। इसलिए घबड़ाना मत, अगर आज तुम्हें अपनी दशा चट्टान जैसी लगे। तुम कहो कि कैसे यह अहंकार बहेगा ? यह चट्टान बड़ी मजबूत है । कैसे यह दिल झुकेगा ? यह झुकना जानता नहीं । तुम इसकी फिकर मत करना, तुम सिर्फ सातत्य रखना ध्यान का, अवलोकन का, साक्षी का। शेष सब अपने से हो जाता है।
बुद्ध ने मनुष्य के व्यक्तित्व का विज्ञान दिया। उन्होंने मनोविज्ञान दिया । मेटाफिजिक्स, परलोक के शास्त्र की बात नहीं की । बुद्ध बड़े यथार्थवादी हैं । वे कहते हैं जो करना जरूरी है, वही । और ज्यादा व्यर्थ की विस्तार की बातों में तुम्हें भटकाने की जरूरत नहीं है। ऐसे ही तुम काफी भटके हुए हो ।
थोड़े से तुम्हें सूत्र दिए हैं। अगर तुम उन्हें कर लो, तो उन सूत्रों में बड़ी आग है। वे अंधकार को जला डालेंगे। वे व्यर्थ को राख कर देंगे । और उन सूत्रों की आग से तुम्हारे भीतर का स्वर्ण निखरकर बाहर आ जाएगा। बुद्ध ने बहुत थोड़ी सी बातें कहीं। उन्हीं-उन्हीं को दोहराकर कहा है । क्योंकि बुद्ध को कोई रस दर्शनशास्त्र में नहीं है। बुद्ध को रस है मनुष्य की आंतरिक - क्रांति में, रूपांतरण में । बुद्ध को जिन लोगों ने गौर से अध्ययन किया है, उन सबको हैरानी होती है कि बुद्ध एक ही बात को कितनी बार दोहराए चले जाते हैं। वह हैरानी इसीलिए होती है कि बुद्ध व्यर्थ की बात को कभी बीच में नहीं लाते। बस सार्थक को ही दोहराते हैं, ताकि सतत चोट पड़ती रहे।
और तुम ऐसे हो, तुम्हारी नींद ऐसी है, तुम्हारी तंद्रा ऐसी है कि बहुत बार दोहराने पर भी तुम सुन लो, वह भी आश्चर्य है । बुद्ध से कोई पूछता था तो वे तीन बार दोहराकर जवाब देते थे। उसी वक्त तीन दफा दोहराकर जवाब देते थे। क्यों तीन बार? क्योंकि... बुद्ध से कोई पूछने लगा कि क्यों तीन बार ? क्या आप सोचते हैं हम बहरे हैं? बुद्ध ने कहा, नहीं। अगर तुम बहरे होते तो इतनी अड़चन न थी । तुम बहरे नहीं हो और फिर भी सुनते नहीं हो। तुम सोए नहीं हो, यही तो अड़चन है। सोए होते तो ज़गाना आसान हो जाता है। तुम बनकर लेटे हो। तुम सोने का ढोंग कर रहे हो। उठना भी नहीं चाहते, जाग भी गए हो। तुम सुनते हुए मालूम पड़ते हो और सुनते भी नहीं, इसलिए तीन बार दोहराता हूं।
यह जो बुद्ध का दोहराना है, धम्मपद में - इस पूरी चर्चा में - बहुत बार आएगा। अलग-अलग द्वारों से वे फिर वहीं लौट आते हैं— कैसे तुम्हारा रूपांतरण हो ? बुद्ध की सारी आकांक्षा, अभीप्सा मनुष्य- केंद्रित है। महावीर मोक्ष-केंद्रित हैं।
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