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एस धम्मो सनंतनो
मेरे देखे तुम्हारी पीड़ा यह नहीं है कि तुम्हारे जीवन में दुख है। तुम्हारी असली पीड़ा यही है कि जो सुख हो सकता था वह नहीं हो पा रहा है। यह दुख की मौजूदगी नहीं है जो तुम्हें पीड़ित कर रही है, यह उस सुख की मौजूदगी का अभाव है जो हो सकता था और नहीं हो पा रहा है । तुम्हारी गरीबी तुम्हें पीड़ा नहीं दे रही है। लेकिन तुम्हारे भीतर जो अमीरी का झरना फूट सकता था, फूटने को तत्पर खड़ा है, उस पर चट्टान पड़ी है, वह झरना फूट नहीं पा रहा है। यह विकास की छटपटाहट है आदमी का संताप। यह आदमी की पीड़ा जन्म लेने की छटपटाहट है।
सारा अस्तित्व खिलने में भरोसा रखता है । जब भी कोई चीज खिल जाती है, तो निर्भार हो जाती है। आदमी भी एक फूल है। और बुद्ध कहते हैं, बड़ा अनूठा फूल है। और बुद्ध जानकर रहते हैं। उनका फूल खिला तब उन्होंने एक अनूठी बात जानी कि विपरीत दिशाओं में भी, जहां हवा नहीं भी जा रही हो, वहां भी संत की गंध चलीं है। संत की गंध कोई सीमाएं नहीं मानती ।
'फूलों की सुगंध वायु की विपरीत दिशाओं में नहीं जाती। न चंदन की, न तगर की, न चमेली की, न बेला की। लेकिन सज्जनों की सुगंध विपरीत दिशा में भी जाती है । '
सज्जन की सुगंध एकमात्र सुगंध है, जो संसार के नियम नहीं मानती। जो संसार साधारण नियमों के पार है, जो अतिक्रमण कर जाती है।
सीख ले फूलों से गाफिल मुद्दआ-ए-जिंदगी खुद महकना ही नहीं गुलशन को महकाना भी है इतना ही काफी नहीं है कि खुद महको ।
खुद महकना ही नहीं गुलशन को महकाना भी है इसलिए बुद्ध ने कहा है, समाधि, फिर प्रज्ञा । समाधि, फिर करुणा । बुद्ध ने कहा है, वह ध्यान ध्यान ही नहीं, जो करुणा तक न पहुंचा दे।
खुद महकना ही नहीं गुलशन को महकाना भी है
उसी समाधि को बुद्ध ने परिपूर्ण समाधि कहा है जो लुट जाए सभी दिशाओं में। सभी दिशाओं में बह जाए।
लेकिन यही समझ लेने की बात है। यह बड़ी विरोधाभासी बात है । तुम साधारण अवस्था में सभी दिशाओं में दौड़ते हो और कहीं नहीं पहुंच पाते। बुद्धत्व की तरफ चलने वाला व्यक्ति एक दिशा में चलता है और जिस दिन पहुंचता है उस दिन सभी दिशाओं में बहने में समर्थ हो जाता है ।
तुम सभी दिशाओं में बहने की कोशिश करते हो । थोड़ा धन भी कमा लें, थोड़ा धर्म भी कमा लें। थोड़ी प्रतिष्ठा भी बना लें, थोड़ी समाधि भी कमा लें। थोड़ा दुकान भी बचा लें, थोड़ा मंदिर भी । तुम सभी दिशाओं में हाथ फैलाते हो। और आखिर में पाते हो भिखारी के भिखारी ही विदा हो गए। जैसे आए थे खाली हाथ वैसे खाली
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