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________________ एस धम्मो सनंतनो कर रहे हो ! मित्र भी चकित हुआ। जब दोनों लौटने लगे गाड़ी में वापस, रास्ते में उसने हिम्मत जुटाई और पूछा, तुम्हें मेरी बातें कैसी लगीं ? मार्क ट्वेन ने कहा, बातें ! सब उधार । मेरे पास एक किताब है जिसमें सब लिखा है । तुमने उसी को पढ़कर बोला है । उस आदमी ने कहा, चकित कर रहे हो। कोई एकाध वाक्य, कोई एकाध टुकड़ा कहीं लिखा हो सकता है, लेकिन जो मैंने बोला है, वह मैंने किसी किताब से लिया नहीं। मार्क ट्वेन ने कहा, शर्त लगाते हो ! सौ-सौ डालर की शर्त लग गई। उपदेष्टा सोचता था निश्चित ही शर्त मैं जीत जाऊंगा। यह पागल किस बात की शर्त लगा रहा है। जो मैं बोला हूं, यह पूरा का पूरा एक किताब में हो ही नहीं सकता। संयोग नहीं हो सकता ऐसा। लेकिन उसे पता नहीं था। मार्क ट्वेन ने दूसरे दिन एक डिक्शनरी भेज दी और लिखा, इसमें सब है जो भी तुम बोले हो। एक-एक शब्द जो तुम बोले हो सब इसमें है । शब्दशः । पर डिक्शनरी और शेक्सपियर में कुछ फर्क है । शब्दकोश में और कालिदास में कुछ फर्क है । शब्दकोश और उपनिषद में कुछ फर्क है। क्या फर्क है ? वही फर्क तुम और बुद्ध में है। तुम केवल शब्दकोश हो । फूल की भीड़, एक ढेर । अनुस्यूत नहीं हो। जुड़े नहीं हो । तारतम्य नहीं है । सब फूल अलग-अलग पड़े हैं, माला नहीं बन पाए हैं। माला उसी का जीवन बनता है जो अपने जीवन को एक साधना देता है, एक अनुशासन देता है। जो अपने जीवन को होशपूर्वक एक लयबद्धता देता है। तब जीवन न केवल गद्य बन जाता है, अगर धीरे-धीरे तुम जीवन को निखारते ही जाओ, तो गद्य पद्य हो जाता है। जीवन तुम्हारा गाने लगता है, गुनगुनाने लगता है । तुम्हारे भीतर से अहर्निश संगीत की एक धारा छूटने लगती है। तुम बजने लगते हो। जब तक तुम जो न, तब तक तुम परमात्मा के चरणों के योग्य न हो सकोगे। और ध्यान रखना, व्यर्थ की शिकायतें-शिकवे मत करना । उनसे शिकवा फजूल है सीमाब - इल्तिफात तू ही नहीं परमात्मा से क्या शिकायत करनी कि आनंद नहीं है जीवन में! - इल्तिफात तू ही नहीं परमात्मा की कृपा के योग्य तू ही नहीं। इसलिए किसी और से शिकवा मत करना । तुम जैसे अभी हो ऐसे ही तुम परमात्मा पर चढ़ने योग्य नहीं हो। तुम माला बनो। तुम जीवन को एक दिशा दो। तुम ऐसे ही सब दिशाओं में मत भागते फिरो पागलों की तरह। तुम एक भीड़ मत रहो। तुम्हारे भीतर एकस्वरता है । और बुद्ध 168
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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