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________________ प्रार्थना स्वयं मंजिल लिए स्थगित मत करना। जो ठीक लगे उसमें आज ही डुबकी लगाना। अगर तुम्हें अवलोकन की बात ठीक लग जाए, तो सोचते मत रहना कि कल करेंगे। ऐसे तुम्हारे जीवन में कभी सुगंध न आएगी। ऐसे यह हो सकता है कि अवलोकन के संबंध में तुम बातें करने में कुशल हो जाओ, और ध्यान के संबंध में तुम शास्त्रकार बन जाओ, लेकिन तुम्हारे जीवन में सुगंध न आएगी। प्रार्थना के संबंध में जान लेना प्रार्थना को जानना नहीं है। प्रार्थना को तो वही जानता है जो करता है। प्रार्थना को तो वही जानता है जो डूबता है। प्रार्थना को तो वही जानता है जो प्रार्थना में मिट जाता है, जब प्रार्थना तुम्हारा अस्तित्व बनती है। ___ आचरण का अर्थ है, तुम्हारा ज्ञान तुम्हारा अस्तित्व हो। तुम जो जानते हो, वह सिर्फ ऊपर से चिपकी हुई बात न रह जाए। उसकी जड़ें तुम्हारे जीवन में फैलें। तुम्हारे भीतर से वह बात उठे। वह तुम्हारी अपनी हो। ऊपर से इकट्ठा ज्ञान ऐसा है जैसे तुमने भोजन तो बहुत कर लिया हो, लेकिन पचा न सके। उससे तुम बीमार पड़ोगे। उससे शरीर रुग्ण होगा। पचा हआ भोजन जीवन देता है, ऊर्जा देता है। अनपचा भोजन जीवन को नष्ट करने लगता है। भूखे भी बच सकते हैं लोग ज्यादा देर तक, ज्यादा भोजन से जल्दी मर जाते हैं। बोझ हो जाता है पूरी व्यवस्था पर। और ज्ञान का तो भारी बोझ है। ' तुम्हारा चैतन्य अगर दब गया है तो तुम्हारे ज्ञान के बोझ से। तुम जानते ज्यादा हो, जीए कम हो। एक असंतुलन हो गया है। बुद्ध कहते हैं, थोड़ा जानो, लेकिन उसे जीने में बदलते जाओ। थोड़ा भोजन करो, लेकिन ठीक से चबाओ, ठीक से पचाओ। रक्त, मांस-मज्जा बन जाए। होश के बंदे समझेंगे क्या गफलत है क्या होशियारी अक्ल के बदले जिस दिन दिल की ज्योति जलाकर देखेंगे अक्ल के बदले जिस दिन दिल की ज्योति जलाकर देखेंगे होश के बंदे समझेंगे क्या गफलत है क्या होशियारी, केवल वे ही समझ पाएंगे जो बुद्धि से गहरे उतरकर हृदय का दीया जलाएंगे। · हृदय के दीए से अर्थ है, जो जानते हैं उसे जीवन बना लेंगे। जो समझा है, वह समझ ही न होगी समाधि बन जाएगी। जो सुना है, वह सुना ही नहीं पी लिया है। ___'जैसे कोई संदर फूल वर्णयुक्त होकर भी निर्गंध होता है, वैसे ही आचरण न करने वाले के लिए सुभाषित वाणी निष्फल होती है।' थोड़ा जानो, जीओ ज्यादा, और तुम पहुंच जाओगे। ज्यादा तुमने जाना और जीया कुछ भी नहीं, तो तुम न पहुंच पाओगे। तब तुम दूसरों की गायों का ही हिसाब रखते रहोगे, तुम्हारी अपनी कोई गाय नहीं। तुम गायों के रखवाले ही रह जाओगे, मालिक न हो पाओगे। पंडित मत बनना। पापी भी पहुंच जाते हैं, पंडित नहीं पहुंचते। क्योंकि पापी भी 163
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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