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एस धम्मो सनंतनो
सिर्फ देखा था। वह था अवलोकन।
'जैसे कोई सुंदर फूल वर्णयुक्त होकर भी निर्गंध होता है, वैसे ही आचरण न करने वाले के लिए सुभाषित वाणी निष्फल होती है।' __ दूसरा सूत्र। जैसे कोई सुंदर फूल रंग-बिरंगा है बहुत, वर्णयुक्त है, लेकिन फिर भी गंधशून्य। ऐसा ही पांडित्य है। रंग बहुत हैं उसमें, सुगंध बिलकुल नहीं। जीवन में सुगंध तो आती है आचरण से। तुम जो जानते हो उससे जीवन में सुगंध नहीं आती। वह तो मौसमी फूल है। दूर से लुभावना लग सकता है। पास आने पर तुम उसे कागजी पाओगे। आदमी भला धोखे में आ जाए, मधुमक्खियां धोखे में नहीं आतीं। तितलियां धोखे में नहीं आतीं। भौरे धोखे में नहीं आते। भौरे धोखे में नहीं आते, तुम परमात्मा को कैसे धोखा दे सकोगे? तितलियां धोखे में नहीं आती, . मधुमक्खियां धोखे में नहीं आतीं, तुम परमात्मा को कैसे धोखा दे सकोगे?
सम्राट सोलोमन के जीवन में कथा है। एक रानी उसके प्रेम में थी और वह उसकी परीक्षा करना चाहती थी कि सच में वह इतना बुद्धिमान है जितना लोग कहते हैं? अगर है, तो ही उससे विवाह करना है। तो वह आई। उसने कई परीक्षाएं लीं। वे परीक्षाएं बड़ी महत्वपूर्ण हैं।
उसमें एक परीक्षा यह भी थी—वह आई एक दिन, राज दरबार में दूर खड़ी हो गई। हाथ में वह दो गुलदस्ते, फूलों के गुलदस्ते लाई थी। और उसने सोलोमन से कहा दूर से कि इनमें कौन से असली फूल हैं, बता दो। बड़ा मुश्किल था। फासला काफी था। वह उस छोर पर खड़ी थी राज दरबार के। फूल बिलकुल एक जैसे लग रहे थे।
सोलोमन ने अपने दरबारियों को कहा कि सारी खिड़कियां और द्वार खोल दो। खिड़कियां और द्वार खोल दिए गए। न तो दरबारी समझे और न वह रानी समझी कि द्वार-दरवाजे खोलने से क्या संबंध है। रानी ने सोचा कि शायद रोशनी कम है, इसलिए रोशनी की फिकर कर रहा है, कोई हर्जा नहीं। लेकिन सोलोमन कुछ और फिकर कर रहा था। जल्दी ही उसने बता दिया कि कौन से असली फूल हैं, कौन से नकली। क्योंकि एक मधुमक्खी भीतर आ गई बगीचे से और वह जो असली फूल थे उन पर जाकर बैठ गई। न दरबारियों को पता चला, न उस रानी को पता चला।
वह कहने लगी, कैसे आपने पहचाना? सोलोमन ने कहा, तुम मुझे धोखा दे सकती हो, लेकिन एक मधुमक्खी को नहीं।
मधुमक्खी को धोखा देना मुश्किल है, परमात्मा को कैसे दोगे?
बुद्ध कहते हैं, 'जैसे कोई सुंदर फूल वर्णयुक्त होकर भी निर्गंध होता है, वैसे ही आचरण न करने वाले के लिए सुभाषित वाणी निष्फल होती है।'
तुम्हें जीवन के सत्यों का पता सोचने से न लगेगा। उन सत्यों को जीने से लगेगा। जीओगे तो ही पता चलेगा। जो ठीक लगे उसे देर मत करना। उसे कल के
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