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प्रार्थना स्वयं मंजिल
घृणा हुई, किसी कृत्य से प्रेम हुआ। आसक्ति-अनासक्ति, राग-द्वेष पैदा हुआ, तो कृत्य तो दूर रहे राग-द्वेष के भावजाल में तुम खो गए। बस कृत्य को देखते रहो। ___ अगर घड़ीभर भी तुम रोज कृत्य का अवलोकन करते रहो, तो तुम्हें ऐसा ही अनुभव होगा जैसा आत्मा ने स्नान कर लिया। दिनभर उसकी ताजगी रहेगी। और दिनभर रह-रहकर लहरें आती रहेंगी आनंद की। रह-रहकर, रह-रहकर झोंके आ जाएंगे। पुलक आ जाएगी। एक मस्ती छा जाएगी! तुम झूम-झूम उठोगे, किसी भीतरी रस से। और यह जो भीतरी रस है, यह बुद्धि का नहीं है, हृदय का है। .
जब तुम सोचते हो और निर्णय करते हो, बुद्धि सक्रिय हो जाती है। जब तुम मात्र देखते हो, तब हृदय का फूल खिलता है। जैसे ही तुमने निर्णय लेना शुरू किया, बुद्धि बीच में आई। क्योंकि निर्णय विचार का काम है। जैसे ही तुमने तौला, तराजू आया। तराजू बुद्धि का प्रतीक है। तुमने नहीं तौला, बस देखते रहे, तो बुद्धि को बीच में आने की कोई जरूरत ही न रही। मात्र देखने की अवस्था में, साक्षीभाव में, बुद्धि हट जाती है। और जीवन के जो गहरे रहस्य हैं उन्हें हृदय जानता है।
__ अक्ल को क्यों बताएं इश्क का राज
गैर को राजदां नहीं करते और हृदय ने कोई राज प्रेम का, परमात्मा का बुद्धि को कभी बताया नहीं।
अक्ल को क्यों बताएं इश्क का राज
गैर को राजदां नहीं करते पराए को कहीं कोई भेद की बातें बताता है ? बुद्धि पराई है, उधार है। हृदय तुम्हारा है।
इसे थोड़ा समझो। जब तुम पैदा हए, तो हृदय लेकर पैदा होते हो। बुद्धि समाज देता है, संस्कार देते हैं, शिक्षा देती है; घर, परिवार, सभ्यता देती है। तो हिंदू के पास एक तरह की बुद्धि होती है। मुसलमान के पास दूसरे तरह की बुद्धि होती है। जैन के पास तीसरे तरह की बुद्धि होती है। क्योंकि तीनों के संस्कार अलग, शास्त्र अलग, सिद्धांत अलग। लेकिन तीनों के पास दिल एक ही होता है। दिल परमात्मा का है। बुद्धियां समाजों की हैं।
रूस में कोई पैदा होता है, तो उसके पास कम्यूनिस्ट-बुद्धि होगी। ईसाई घर में कोई पैदा होता है, तो उसके पास ईसाई-बुद्धि होगी। बुद्धि तो धूल है बाहर से इकट्ठी की हुई। जैसे हृदय के दर्पण पर धूल जम जाए। दर्पण तो तुम लेकर आते हो, धूल तुम्हें मिलती है।
इस धूल को झाड़ देना जरूरी है। समस्त धर्म की गहनतम प्रक्रिया धूल को झाड़ने की प्रक्रिया है, कि दर्पण फिर स्वच्छ हो जाए, तुम फिर से बालक हो जाओ, तुम फिर हृदय में जीने लगो। तुम फिर वहां से देखने लगो जहां से तुमने पहली बार देखा था, जब तुमने आंख खोली थी। तब बीच में कोई बुद्धि न खड़ी थी। तब तुमने
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