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का एक प्रकरण है, जिसमें बुद्ध के धर्म-संबंधी सूक्त (सुत्त) या कथन संगृहीत हैं। खुद्धक निकाय छोटे-छोटे प्रकरणों का संग्रह है। इसमें पंद्रह प्रकरण हैं-खुद्धक पाठ, धम्मपद, उदान, इतिवृत्तक, सुत्त निपात, विमानवत्थु, पेतवत्थु, थेरगाथा, थेरी गाथा, जातक, निद्देस, पटिसम्भिदामग्ग, अपदान, बुद्धवंस और चरिया पिटक।
धम्मपद बौद्ध धर्म की गीता है। , इसमें कुल 423 गाथाएं हैं, जो भगवान बुद्ध द्वारा बुद्धत्व-प्राप्ति के समय से लेकर परिनिर्वाण-काल तक उपदेश-क्रम में समय-समय पर कही गई थीं।
अभिधम्मपद अभिधम्म पिटक की पालि में आता है। बौद्ध वाङ्मय में तीन पिटक प्रधान हैं—सुत्त पिटक, विनय पिटक और अभिधम्म पिटक। सुत्त पिटक, में बुद्ध और उनके अग्र शिष्यों के उपदेशों का संग्रह है। विनय पिटक में भिक्षुओं, थेरों और थेरियों के आचरण के संबंध में बनाए गए 'विनयों' (नियमानुशासनों) का संग्रह है और अभिधम्म पिटक के सप्त अध्यायों में बुद्ध के धर्मोपदेशों का सम्यक विवेचन है। 'सुमंगल विलासिनी' की निदान-कथा में भी ये प्रसंग आते हैं। धर्म और विनय के नाम से विभाजित बुद्ध के उपदेशों के अंतर्गत मज्झिम निकाय के अलगद्दपम सुत्त तथा अंगुत्तर निकाय के अनुसार धर्म के नौ अंग मान्य हैं-सुत्त, गेय्य, वेय्याकरण, गाथा, उदान, इतिवृत्तक, जातक, अब्भुत-धम्म और वेदल्ल। ___ ओशो बुद्ध को-धम्मपद के दुरधिगम पदों को इसलिए भी प्रामाणिक ढंग से समझने और समझाने के हकदार हैं कि वे स्वयं बुद्ध हैं, अंतर्यामिता से युक्त हैं और ताओ के मार्ग (द वे आफ ताओ) के भी व्याख्याता हैं, जन्मांतर प्रसंग के 'बारदो थोडल' पर अपने ढंग से विचार करने वाले मनीषी हैं, 'झेन बुद्धिज्म' के 'सतोरी' और 'कोआन' के जानकार हैं, तथा उन्होंने उस प्रगूढ़ रहस्य को भी समझा है, जो बौद्ध गुह्याचार (बुद्धिस्ट इसोटेरिज्म) का प्रस्थान बिंदु है एवं जो ‘चरित्र' की अपेक्षा 'शील' को अधिक महत्व देता है।
शांति, आनंद और ऊर्जा की वर्षा के लिए 'धम्मपद' की व्याख्या के बहाने ओशो हमें रूपांतरण और दमन का अंतर बताते हैं। इतना ही नहीं, वे दमन की
1 इसलिए धम्मपद के अनेक संस्करण, मूल पाठ और व्याख्या के साथ, मिलते हैं। इन संस्करणों में डा.राधाकृष्णन द्वारा संपादित संस्करण के अलावा विशेष रूप से द्रष्टव्य हैTHE DHAMMAPADA : Verses and stories, Translated by DAW MYA TIN, (A Reprint of Burma Pitaka Association Publication), Bibliothiea Indo-Tibetica Series-XX, published by Central Institute of Higher Tibetan Studies, Sarnath, Varanasi, 1990. रजिसकी अट्ठकथाओं को खुद्धकपाठ-अट्ठकथा के साथ समन्वित कर ‘परमत्थजोतिका' नाम दिया गया है। 3 जैसे-'भिक्षुणी विनय' (संपादक, गुस्तफ रौथ, के.पी.जायसवाल रिसर्च इंस्टीच्यूट, पटना, 1970) और 'पातिमोक्ख' (संपादक, आर.डी.वडेकर, भंडारकर ओरियेंटल रिसर्च इंस्टीच्यूट, पूना, 1939)