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________________ एस धम्मो सनंतनो कहते हैं, समझ का अर्थ है विचारों के ऊहापोह का शांत हो जाना। निर्मल दृष्टि का आविर्भाव। ऐसे देखना कि देखो तो जरूर, लेकिन चिंतन का धुआं तुम्हारी आंखों पर न हो। धुएं से रहित जब तुम्हारी चेतना की ज्योति जलती है, तब समझ। ___ पतंजलि भी यही कहता है-निर्विचार, निर्विकल्प। न कोई सोच-विचार, न कोई कल्प-विकल्प मन में, वही स्थिति समाधि। समाधि का अर्थ होता है समाधान। जहां सब चिंतन समाप्त हो गया, सब प्रश्न गिर गए, उस समाधान की अवस्था में तुम एक दर्पण बन जाते हो। उस दर्पण में जो है- 'जो है' कृष्णमूर्ति का शब्द है परमात्मा के लिए। कृष्णमूर्ति कहते हैं—दैट व्हिच इज, जो है। पतंजलि कहेगासत्य। मीरा कहेगी-कृष्ण। बुद्ध कहेंगे—निर्वाण। ये उनके अपने-अपने शब्द हैं। जो है, वह तुम्हें उसी क्षण दिखाई पड़ेगा जब तुम्हारी सब धारणाएं गिर जाएंगी। जब तक तुम धारणा से.देखोगे, तब तक तुम वही देख लोगे जो तुम्हारी धारणा दिखा देगी। जैसे किसी ने रंगीन चश्मा लगाकर संसार देखा, तो उसी रंग का दिखाई पड़ने लगता है। हर धारणा का रंग है। समझ निर्धारणा है। उसका कोई रंग नहीं। समझ का अर्थ है, वही दिखाई पड़ जाए जो है। जैसा है, वैसा ही दिखाई पड़े। तो इन शब्दों के बहुत जाल में तुम मत पड़ना। तुम्हें जो रुच जाए, जो भा जाए। समझ भा जाए, ठीक। मगर मेरा खयाल है, समझ से तुम्हें अड़चन इसीलिए होती है कि तुम सोचते हो समझदार तो हम हैं। समाधि को पाना है। शायद तुम यह भी सोचते हो कि चूंकि हम समझदार हैं इसीलिए तो समाधि पाने निकले। नासमझ कहीं समाधि पाने की चेष्टा करते हैं ! लेकिन मैं तुमसे कहता हूं, नासमझ वही है जिसने अपने को समझदार समझ लिया है। सभी नासमझ अपने को समझदार समझते हैं, तुम्ही थोड़े ही। समझदार वही है जिसने अपनी नासमझी पहचान ली है। और जिसने अपनी नासमझी पहचान ली है, वह धीरे-धीरे-दो उपाय हैं उसके—या तो वह शुद्ध समझदारी के ही सूत्र को बड़ा करता चला जाए। प्रत्येक कृत्य जागकर करने लगे, होश से करने लगे-उठे तो होशपूर्वक, बैठे तो होशपूर्वक, चले तो होशपूर्वक, जो कुछ भी करे उसके पीछे होश साध ले। और दूसरा उपाय पुराना उपाय है, कि अगर इतना न हो सके, तो कम से कम घड़ीभर, दो घड़ी चौबीस घंटे में से निकाल ले और उन दो घड़ियों को समाधि के क्षणों में बिताए, ध्यान में बिताए। ___घड़ीभर अगर तुमने ध्यान में बिताया, तो धीरे-धीरे तुम पाओगे, उस ध्यान का प्रभाव चौबीस घड़ियों पर फैलने लगा। क्योंकि यह असंभव है कि तुम एक घंटे के लिए स्वस्थ हो जाओ और तेईस घंटे बीमार रहो। एक घंटे को भी जो स्वस्थ हो गया, उसके स्वास्थ्य की लहरें चौबीस घंटों पर फैल जाएंगी। तो पुराने मनीषियों ने कहा है, चौबीस घंटे तुम आज शायद निकाल भी न पाओ-तुमसे आशा भी रखनी उतनी उचित नहीं है-तुम घड़ीभर निकाल लो। ऐसा नहीं कि उन्हें पता नहीं कि 146
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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