________________
समझ और समाधि के अंतरसूत्र
घड़ीभर से क्या होगा? लेकिन शुरुआत होगी। और जब हाथ पकड़ में आ जाए, तो फिर धीरे-धीरे पूरे सत्य को ही पकड़ा जा सकता है।
कृष्णमूर्ति कहते हैं, अलग से ध्यान करने की कोई जरूरत नहीं। ठीक ही कहते हैं। जिन्होंने अलग से करने को कहा है वे भी जानते हैं कि अलग से करने की कोई जरूरत नहीं। लेकिन अभी तुम चौबीस घंटे कर सकोगे, इतनी अपेक्षा वे नहीं करते।
कृष्णमूर्ति ने तुम पर ज्यादा भरोसा कर लिया। पतंजलि उतना भरोसा तुम पर नहीं करते। और इसलिए पतंजलि ने तो तुम में से कुछ को समाधि तक पहुंचा दिया, कृष्णमूर्ति न के बराबर किसी को पहुंचा पाए हों । तुम पर जरा ज्यादा भरोसा कर लिया। तुम घुटने से सरक - सरककर चलते थे । कृष्णमूर्ति ने मान लिया कि तुम दौड़कर चल सकते हो ।
कृष्णमूर्ति ने जो बात कही है, अपने हिसाब से कह दी, तुम्हारी चिंता नहीं की। पतंजलि ने जो बात कही है उसमें तुम्हारी चिंता है । और एक-एक कदम तुम्हें उठाने की बात है। पतंजलि ने सीढ़ियां रखी हैं, कृष्णमूर्ति ने छलांग । तुम सीढ़ियां चढ़ने तक की हिम्मत नहीं जुटा पाते, तुम छलांग क्या खाक लगाओगे !
और अक्सर ऐसा होता है कि जो सीढ़ियों पर चढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाते कृष्णमूर्ति में उत्सुक हो जाते हैं। क्योंकि यहां तो सीढ़ियां चढ़नी ही नहीं, छलांग है । और वे कभी यह सोचते ही नहीं कि हम सीढ़ियां चढ़ने तक का साहस नहीं कर पा रहे, हम छलांग कैसे लगाएंगे ? लेकिन, छलांग लगानी है, सीढ़ियां चढ़ने से क्या होगा, इस भांति बहाना मिल जाता है। सीढ़ियां चढ़ने से बच जाते हैं और छलांग तो लगानी किसको है?
जितना ज्यादा मैंने तुम्हारे भीतर झांककर देखा उतना ही पाया कि तुम अपने को धोखा देने में बहुत कुशल हो। तुम्हारी सारी समझदारी वही है । कृष्णमूर्ति ने तुम पर जरूरत से ज्यादा आस्था कर ली। तुम इस योग्य नहीं । इसलिए कृष्णमूर्ति जीवनभर चिल्लाते रहे और किसी को कोई सहायता नहीं पहुंची। क्योंकि वे वहां से मानकर ‘चलते हैं जहां तुम नहीं हो। और जो लोग उनके आसपास इकट्ठे हुए, उनमें अधिक लोग ऐसे हैं जो कुछ भी नहीं करना चाहते, उनको बहाना मिल गया। उन्होंने कहा, करने से कहीं कुछ होगा ? यह तो होश की बात है, करने से क्या होगा ? करने से भी बच गए, होश तो साधना किसको है?
मेरे पास रोज ऐसी घटनाएं आती हैं। अगर मैं किसी को कहता हूं कि तुम शांत-ध्यान करो, तो वह कुछ दिनों बाद आकर कहता है कि ऐसा शांत बैठने से कुछ नहीं होता। और शांत बैठने से होगा भी क्या ? ऐसा आंख बंद करने से कहीं कुछ ध्यान हुआ है ? अगर मैं उनको कहता हूं कि छोड़ो, सक्रिय-ध्यान करो। कुछ दिन बाद वे आकर कहते हैं कि ऐसे नाचने-कूदने - उछलने से क्या होगा ? अरे, ध्यान तो शांत होना चाहिए ! वह आदमी - वही आदमी - भूल ही जाता है। जब
147