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समझ और समाधि के अंतरसूत्र लो, ऐसा दो-चार - दस दिन निकल जाएं, अपना नाम ही भूल जाए! क्योंकि मैं कोई नाम तो नहीं हूं।
मन की इस वृत्ति को थोड़ा बदलो । अगर मेरी कोई भूल होगी, तो उसको मैं भोगूंगा, तुम क्यों परेशान हो ? मेरे पाप, मेरी भूलें मुझे भटकाएंगे। तुम अपनी भूलों को सुधार लो। तुम अपने होश को सम्हाल लो। और इस तरह की व्यर्थ की बातें मत पूछो।
अंतिम प्रश्न :
पतंजलि और सारे बुद्धपुरुषों ने कहा है, समाधि । परंतु कृष्णमूर्ति कहते हैं, समझ । समाधि से तो लगता है समझ फलित हो सकती है, परंतु समझ से समाधि कैसे फलित हो सकती है ? क्या केवल समझ से बुद्धत्व की स्थिति प्राप्त की जा सकती है ? भगवान, इसे ठीक से समझाएं।
शब्दों का ही भैद है समझ और समाधि में । जिसे कृष्णमूर्ति समझ कहते हैं, उसी को पतंजलि समाधि कहते हैं । तुम्हारी अड़चन मैं समझता हूं कहां है। क्योंकि तुम सोचते हो समझदार तो तुम हो। इसलिए क्या अकेली समझ से समाधि फलित हो सकती है ? क्योंकि अगर ऐसा होता, तब तो समाधि फलित हो गई होती, समझदार तुम हो ।
बुरा न मानना, समझदार भी तुम नहीं हो, समाधि भी तुम्हें अभी फलित नहीं हुई। समझ तो समाधि बन ही जाती है। समझ और समाधि एक ही घटना के नाम हैं।
कृष्णमूर्ति को पुराने शब्दों का उपयोग करने में थोड़ी अड़चन है । अड़चन यही 1. है कि पुराने शब्द पुराने अर्थों से बहुत बोझिल हो गए हैं। इसलिए कृष्णमूर्ति नए शब्दों का उपयोग करते हैं। लेकिन शब्दों का तुम चाहे कुछ भी, कितना ही नया उपयोग करो, तुम गुलाब के फूल को गुलाब कहो या चमेली कहना शुरू कर दो, इससे गुलाब का फूल न बदल जाएगा। तुम्हारे चमेली कहने से तुम गुलाब के फूल कोन बदल दोगे। तुम नाम बदलते चले जाओ, गुलाब का फूल गुलाब ही रहेगा। आदमी ने परमात्मा की कितनी प्रतिमाएं बनायीं । प्रतिमाएं अलग-अलग हैं, परमात्मा एक है।
कृष्णमूर्ति किसे समझ कहते हैं? अगर उनकी तुम परिभाषा समझोगे, तो तुम पाओगे वह परिभाषा वही है जिसको पतंजलि ने समाधि कहा है। क्या है कृष्णमूर्ति की परिभाषा समझ की ? वे कहते हैं, समझ का अर्थ है होश, परिपूर्ण जागृति । वे
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