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________________ एस धम्मो सनंतनो जवाब न दिए, तो सुनने वालों ने समझा कि इनको कुछ आता नहीं है। जब आता ही नहीं तो जवाब कैसे देंगे? बुद्ध ने इसलिए जवाब नहीं दिए कि जवाब उन बातों के दिए ही नहीं जा सकते। उन बातों का जवाब केवल वही दे सकता है जो जानता न हो। जो जानता है, वह चुप रह जाएगा। जब मैं तुमसे बोल रहा हूं तो मैं एक अति कठिन काम कर रहा हूं। पहला, कि तुम्हारी और मेरी उपस्थिति संपूर्ण रूप से एक हो जाए। तो बोल नहीं सकता। या फिर मैं बोलं तो तमसे मेरी उपस्थिति का कोई मिलन न हो पाए। तो फिर बोल सकता हूं, लेकिन वे शब्द फिर कोरे होंगे। तब शब्द की कोई भूल न होगी। पंडित से कभी शब्द की भूल नहीं होती। बुद्धों से होती है। पंडित शब्द में कुशल होता है, क्योंकि यंत्र को ही निखारता रहता है। शब्द तो कामचलाऊ हैं। जो मुझे कहना है, वह इन कामचलाऊ शब्दों से तुम समझ लेना। तुम यह बैठे मत सोच लेना कि व्याकरण की कोई भूल हो गई। तो बुद्धपुरुषों से कैसे भूल हो सकती है? व्याकरण मुझे आती ही नहीं। इतना चला ले रहा हूं वह भी चमत्कार है! मौन आता है, भाषा नहीं आती। किसी तरह चला ले रहा हूं। अब इन मित्र ने पूछा है कि 'होशपूर्ण व्यक्ति भूल नहीं करता, तो कृपया मेरे नाम में अंग्रेजी में तो लिखा है-स्वामी श्यामदेव भारती, और हिंदी में लिखा है-स्वामी श्यामदेव सरस्वती।' जरूर मैं तुम्हें देखने में लग गया होऊंगा जब ये नाम लिखे। और संभावना इसकी है श्यामदेव भारती! श्यामदेव सरस्वती! कि तुम दो आदमी हो, एक नहीं। स्प्लिट, टूटे हुए। दर्पण में दो चेहरे बन गए होंगे। इस तरह भी तुम देख सकते थे। लेकिन उस तरह देखोगे तो तुम्हारी जिंदगी तुम्हें बदलनी पड़े! तुमने तत्क्षण देखा कि अरे! बुद्धपुरुष से भूल हो गई। कहां फंस गए? कोई और बुद्धपुरुष खोजें, जो श्यामदेव सरस्वती लिखे तो श्यामदेव सरस्वती ही लिखे। झेन फकीर हुआ लिंची। वह अपने शिष्यों को नाम दे देता और भूल जाता। किसी को कोई नाम दे देता और जब वह दूसरे दिन उसको बुलाता तो वह किसी और नाम से बुलाता। लोग कहते, यह भी क्या बात हुई ? हमने तो सुना है कि बुद्धपुरुष कभी इस तरह का विस्मरण नहीं करते। लिंची कहता, लेकिन जिसको मैंने नाम दिया था कल, वह अब है कहां? तुम कुछ और ही होकर आ गए हो। तुम्हीं आते जो कल थे, तो पहचान भी लेता। तुम्ही बदलकर आ गए तो अब मैं क्या करूं? दूसरा फकीर हुआ बोकोजू। वह रोज सुबह उठकर कहता, बोकोजू! और फिर खुद कहता, यस सर! जी हां, यहीं हूं। उसके शिष्य पूछते कि यह क्या मामला है? वह कहता, रात सोने में भूल जाते हैं कि कौन सोया था! सुबह अगर याद न कर 144
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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