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एस धम्मो सनंतनो
तत्क्षण दूसरे दिन प्रश्न आ गया कि बुद्धपुरुषों से तो कोई भूल होती नहीं, और बुद्धपुरुष ने कैसे मक्खी उड़ा दी आनंद से बातचीत करते हुए?
तुम पागल हो। बुद्धपुरुष से भूल नहीं होती, इसी का सबूत है उनका दुबारा मक्खी को उड़ाना। अगर तुम जैसे बुद्ध होते, तो चुप रह जाते। अगर वे भी इस सिद्धांत को मानते होते कि बुद्धपुरुष से भूल नहीं होती, कैसे उड़ाऊं। आनंद क्या कहेगा, कि आप बुद्ध होकर और भूल कर लिए?
बुद्धपुरुष से भूल नहीं होती, लेकिन अगर हो जाए तो बुद्धपुरुष तत्क्षण स्वीकार कर लेता है। बिना किसी के बताए भी। भूल नहीं होती इससे भी बड़ी बात यह है कि वह भूल को स्वीकार कर लेता है। तुमसे भूल भी होती है और भूल को स्वीकार करने में कष्ट भी होता है, अड़चन भी होती है। तुम भूल को छिपाते हो, तुम ढांकते हो। तुम चेष्टा करते हो कि किसी को पता न चले कि हो गई। __अब यह मक्खी उड़ाने की बात तो दुनिया में कभी किसी को पता भी न चलती। कि चलती? कौन बैठा था वहां खुर्दबीन लेकर? आनंद को भी पता न था, वे अगर दुबारा हाथ न ले जाते तो आनंद को भी पता न चलता। पर यह सवाल नहीं है।
बुद्ध ने इतना ही कहा कि अगर चैतन्य एक तरफ उलझा हो, जैसे आनंद से बात कर रहे थे तो सारा ध्यान उस तरफ था-बुद्धपुरुष जो भी करते हैं पूरे ध्यान से करते हैं तो जब वे बात कर रहे थे तो सारा ध्यान उस तरफ था। वे तुम जैसे कटे-बंटे नहीं हैं कि बाएं देख रही है आधी खोपड़ी और आधी खोपड़ी दाएं देख रही है। वे पूरे ही आनंद की तरफ मुड़ गए होंगे।
तुम्हें भूल दिखाई पड़ती है, मुझे उनके ध्यान की एकाग्रता दिखाई पड़ती है। वे इतने तल्लीन होकर आनंद से बात करते थे कि जैसे सारा संसार मिट गया था। सारा संसार मिट गया था, मक्खी की तो बात क्या! ऐसी घड़ी में शरीर ने यंत्रवत मक्खी उड़ा दी। बुद्ध ने उड़ाई मक्खी भूल से, ऐसा कहना भी गलत है। क्योंकि बुद्ध तो मौजूद ही न थे। बुद्ध तो मौजूद थे आनंद से चर्चा में। शरीर ने उड़ा दी।
शरीर बहुत से काम यंत्रवत करता है। रात तुम सोए भी रहते हो, मच्छर आ जाता है, हाथ उड़ा देता है। उसके लिए जागने की भी जरूरत नहीं होती। तुम बैठे हो, कोई एक कंकड़ फेंक दे तुम्हारी आंख की तरफ, तो तुम्हें आंख बंद थोड़े ही करनी पड़ती है। आंख अपने से बंद हो जाती है। वह स्वचालित है, आटोमैटिक है।
और अच्छा है कि स्वचालित है। नहीं तो कंकड़ पड़ जाता और तुम आंख बंद करने की सोचते ही रहते, करें बंद कि न करें। इसलिए प्रकृति ने तुम पर नहीं छोड़ा है। तुम्हारे लिए नहीं छोड़ा है कि तुम सोचो, फिर बंद करो। उसमें तो खतरा हो जाएगा। आंख जैसी नाजुक चीज तुम्हारे ऊपर नहीं छोड़ी जा सकती। प्रकृति ने इंतजाम किया है, जैसे ही कोई चीज करीब आएगी, आंख अपने से बंद हो जाएगी। तुम थोड़े ही आंख झपकाते हो, आंख झपकती है।
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