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समझ और समाधि के अंतरसूत्र
दृश्य पर मत अटके रहो। द्रष्टा में ठहर जाओ। अकंप हो जाए तुम्हारे द्रष्टा का भाव, साक्षी का भाव, बुद्धत्व उपलब्ध हो गया। और ऐसा बुद्धत्व सभी जन्म के साथ लेकर आए हैं। __इसलिए मैं तुमसे कहता हूं, बुद्धत्व जन्मसिद्ध अधिकार है। जब चाहो तब तुम उसे उठा लो, वह तुम्हारे भीतर सोया पड़ा है। जब चाहो तब तुम उघाड़ लो, वह हीरा तुम लेकर ही आए हो; उसे कहीं खरीदना नहीं, कहीं खोजना नहीं।
चौथा प्रश्न:
होशपूर्ण व्यक्ति भूल नहीं करता तो कृपया मेरे नाम में अंग्रेजी
और हिंदी में इस अंतर का क्या रहस्य है? हिंदीः स्वामी श्यामदेव सरस्वती, और अंग्रेजीः स्वामी श्यामदेव भारती।
तुम से बात करना करीब-करीब ऐसे है जैसे दीवाल से बात करना। तुमसे
बात करना करीब-करीब ऐसे है जैसे बहरे आदमी से बात करना। तुम जो समझना चाहते हो वही समझते हो। तुम्हें लाख कुछ और दिखाने के उपाय किए जाएं, तुम उनसे चूकते चले जाते हो। और बड़े मजे की बात है कि तुम जिन सिद्धांतों से मुक्त हो सकते थे, जो सिद्धांत तुम्हारे जीवन को नए आकाश से जोड़ देते, वे ही सिद्धांत तुम अपनी जंजीरों में ढाल लेते हो। __ जैसे, यह बात बिलकुल सच है कि बुद्धपुरुष भूल नहीं करते। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि जिन चीजों को तुम भूल समझते हो वैसी भूल बुद्धपुरुष नहीं कर सकते। बुद्धपुरुष कोई मुर्दा थोड़े ही है। सिर्फ मुर्दा बिलकुल भूल नहीं करते। तो तुम्हारे हिसाब में तो सिर्फ मुर्दे ही बुद्धपुरुष हो सकते हैं। इसीलिए तो जीवित गुरु को पूजना बहुत कठिन है। मरे हुए गुरु को पूजना आसान होता है। क्योंकि मरा हुआ गुरु फिर कोई भूल नहीं कर सकता है।
बुद्धपुरुष का तुमने क्या अर्थ ले लिया है? जैसे कि पीछे मैंने कहा कि बुद्ध एक मार्ग से गुजरते थे। एक मक्खी उनके कंधे पर आकर बैठ गई। वे बात कर रहे थे आनंद से, उन्होंने उसे उड़ा दिया। मक्खी तो उड़ गई, फिर वे रुक गए। और उन्होंने फिर से अपना हाथ उठाया और बड़े आहिस्ता से मक्खी को उड़ाने को गए। आनंद ने पूछा, अब आप क्या करते हैं, मक्खी तो जा चुकी। बुद्ध ने कहा, अब मैं ऐसे उड़ाता हूं जैसे उड़ाना चाहिए था। तुझसे बात में लगा था, बिना होश के मक्खी उड़ा दी। चोट लग जाती कहीं, मक्खी पर हाथ जोर से पड़ जाता कहीं-पड़ा नहीं संयोग—तो हिंसा हो जाती। मैंने जानकर नहीं की होती, फिर भी हो तो जाती।
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