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एस धम्मो सनंतनो
___ कैसे? तो उसने लिखा है कि सब परतंत्र हो गया है, लेकिन इस परतंत्रता की तरफ मैं क्या दृष्टि लूं, उसके लिए मैं मालिक हूं। क्या दृष्टि लूं, कैसे इसे देखू, स्वीकार करूं, अस्वीकार करूं, लडूं, न लडूं-द्रष्टा स्वतंत्र है।
और उसने लिखा है कि जिनको भी यह स्वतंत्रता का अनुभव हुआ, उन्होंने पाया कि ऐसी स्वतंत्रता की प्रतीति बाहर कभी भी न हुई थी। क्योंकि जहां इतनी परतंत्रता थी—इतनी काली दीवाल थी-वहां स्वतंत्रता की छोटी सी सफेद लकीर बड़ी उभरकर दिखाई पड़ने लगी।
तो उसने लिखा, वहां भी दो तरह के लोग थे कारागृह में। स्वतंत्र लोग भी थे वहां, जो स्वतंत्र ही रहे। वहां असली पता चल गया कि कौन स्वतंत्र है! उनको हिटलर झुका न सका, उनको तोड़ न सका। उनको भूखा मार डाला, उनको कोड़े लगाए, लेकिन उनको झुकाया न जा सका। उनको मारा जा सका, लेकिन झुकाया न जा सका। उनकी स्वतंत्रता अक्षुण्ण थी।
कौन तुम्हें कारागृह में डाल सकता है? लेकिन, अगर तुम्हारे भीतर द्रष्टा का बोध ही न हो, तो तुम अपने घर में भी कारागृह में हो जाते हो। .
खुदा गवाह है दोनों हैं दुश्मने-परवाज
गमे-कफस हो कि राहत हो आशियाने की कारागृह का दुख हो, वह तो बांधता ही है कि राहत हो आशियाने की-घर की सुख-सुविधा भी बांध लेती है। जिसको बंधना है, वह कहीं भी बंध जाता है। उसके लिए कारागृह जरूरी नहीं। __तुम अपने घर को ही सोचो। तुमने कब का उसे कारागृह बना लिया। तुम स्वतंत्र हो अपने घर में? अगर तुम अपने घर में ही स्वतंत्र नहीं हो, अगर वहां भी तुम्हारी मालकियत नहीं है, अगर वहां भी तुम्हारा द्रष्टा मुक्त नहीं हुआ है, अगर तुम कहते हो मेरा घर, तो तुम गुलाम हो। अगर तुम कहते हो इस घर में मैं रहता हूं, और यह घर मुझमें नहीं, तो तुम मालिक हो।
खुदा गवाह है दोनों हैं दुश्मने-परवाज आकाश में उड़ने की क्षमता दोनों छीन लेते हैं।
गमे-कफस हो कि राहत हो आशियाने की कारागृह तो छीन ही लेता है आकाश में उड़ने की क्षमता, घर की सुख-सुविधा भी छीन लेती है। सुरक्षा भी छीन लेती है।
तो असली सवाल न तो घर का है और न कारागृह का है। असली सवाल तुम्हारा है। तुम अगर कारागृह में भी द्रष्टा बने रहो, तो तुम मुक्त हो। और तुम घर में भी अगर द्रष्टा न रह जाओ, भोक्ता हो जाओ, तो बंध गए।
द्रष्टा हो जाना बुद्ध हो जाना है। बुद्धत्व कुछ और नहीं मांगता, इतना ही कि तुम जागो, और उसे देखो जो सब को देखने वाला है। विषय पर मत अटके रहो।
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