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________________ समझ और समाधि के अंतरसूत्र वह एक है। जिसने उसे खोजना शुरू कर दिया, उसने सत्य की तरफ कदम रखने शुरू कर दिए। तो इस बात को स्मरण रखो कि जो भी संयोग मालूम पड़े उस पर बहुत समय मत गंवाना, बहुत शक्ति मत लगाना । बहुत अपने को उस पर निर्भर मत रखना । वह है तो ठीक, नहीं है तो ठीक। चिंतन करना उसका, मनन करना उसका, करना उसका, जो संयोगातीत है । उसका ही नाम बुद्धत्व है। ध्यान जिंदगी एक आंसुओं का जाम था पी गए कुछ और कुछ छलका गए जिंदगी तो आंसुओं का एक प्याला है। जो तुम पी रहे हो, वे तो आंसू ही हैं। कभी-कभार शायद जीवन में सुख की थोड़ी सी झलक भी मिलती है; लेकिन वह भी संयोग-निर्भर है। इसलिए उसके भी तुम मालिक नहीं । कब जिंदगी तुम पर मुस्कुरा देगी, उसके तुम मालिक नहीं । इसको ही तो पुराने ज्ञाताओं ने भाग्य कहा था, कि वह सब भाग्य की बात है । भाग्य का इतना ही अर्थ है कि वह संयोग की बात है, उसकी चिंता में बहुत मत पड़ो। जो भाग्य है, वह हजार कारणों पर निर्भर है। लेकिन जो तुम हो, वह किसी कारण पर निर्भर नहीं है। मैं एक यहूदी विचारक फ्रेंकल का जीवन पढ़ता था । वह हिटलर के कारागृह में कैद था। उसने लिखा है कि हिटलर के कारागृह से और खतरनाक कारागृह दुनिया में कभी रहे नहीं। दुख, पीड़ा, सब तरह का सताया जाना, सब तरह का अपमान, हर छोटी-छोटी बात पर जूतों से ठुकराया जाना, लेकिन वहां भी उसने लिखा है कि मुझे धीरे-धीरे बात समझ में आ गई कि मेरी स्वतंत्रता अक्षुण्ण है। जब मैं पढ़ रहा था उसका जीवन तो मैं भी चौंका, कि इसने अपनी स्वतंत्रता वहां कैसे पाई होगी? हिटलर ने सब इंतजाम कर दिए परतंत्र करने के, दीन करने के, दुखी करने के; एक रोटी का छोटा सा टुकड़ा रोज मिलता, वह एक दफे भोजन के लिए भी काफी नहीं था, तो लोग उसे छिपा छिपा कर रखते। फ्रेंकल बड़ा मनोवैज्ञानिक, प्रतिष्ठित विचारक। लेकिन उसने भी लिखा है कि बड़े डाक्टर मेरे साथ थे, जिन्होंने कभी सोचा भी न होगा कि किसी की दूसरे की रोटी का टुकड़ा चुरा लेंगे; बड़े धनपति मेरे साथ थे, जो अपनी रोटी के टुकड़े को एक-एक टुकड़ा करके खाते – एक टुकड़ा सुबह खा लिया जरा सा, फिर दोपहर में खा लिया। क्योंकि इतनी बार भूख लगेगी, थोड़ा-थोड़ा करना ज्यादा बेहतर बजाय एक बार खा लेने के। फिर चौबीस घंटे भूखा रहना पड़ता है। तो छोटा-छोटा मन को समझाते । लोग अपनी रोटी को छिपाकर रखते, बार-बार देख लेते कि कोई दूसरे ने निकाल तो नहीं ली, क्योंकि सौ कैदी एक जगह बंद | रात लोग एक-दूसरे के बिस्तर में से टटोलकर रोटी निकाल लेते। ऐसा दीन हिटलर ने कर दिया। लेकिन, उसने लिखा है, फिर भी मुझे एक बात समझ में आ गई कि मेरी स्वतंत्रता अक्षुण्ण है। 139
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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