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एस धम्मो सनंतनो
और सब जीवन में नदी-नाव संयोग है। किसी स्त्री के तुम प्रेम में पड़ गए, और तुमने शादी कर ली, वह नदी-नाव संयोग है। धन कमा लिया किसी ने और कोई न कमा पाया, वह नदी-नाव संयोग है। किसी ने यश कमा लिया और कोई बदनाम हो गया, वह नदी-नाव संयोग है। वह हजार परिस्थितियों पर निर्भर है। वह तुम्हारा स्वभाव नहीं। वह बाहर पर निर्भर है, भीतर पर नहीं।
सिर्फ एक चीज नदी-नाव संयोग नहीं है, वह है तुम्हारा होना। शुद्ध होना। बुद्धत्व भर संसार के बाहर है, शेष सब संसार है। तो जिस दिन तुम जागते हो, उस दिन तुम अचानक संसार के बाहर हो जाते हो, अतिक्रमण हो जाता है।
ऐसा समझो कि तुम एक सपना देख रहे हो। सपने में कोई देख रहा है गरीब है, कोई देख रहा है अमीर है। कोई देखता है साधु, कोई देखता है असाधु। कोई देखता है हजार माप कर रहा हूं, कोई देखता है हजार पुण्य कर रहा हूं। यह सब नदी-नाव संयोग है। यह सब सपना है। लेकिन वह जो सपना देख रहा है, वह जो द्रष्टा है, वह नदी-नाव संयोग नहीं है। चाहे सपना तुम साधु का देखो, चाहे असाधु का, सपने में भेद है, देखने वाले में कोई भेद नहीं है। वह देखने वाला वही है। चाहे साधु, चाहे असाधु; चाहे चोर, चाहे अचोर; पाप करो, पुण्य करो; वह जो देखने वाला है भीतर वह एक है। उस देखने वाले को ही जान लेना बुद्धत्व है। स्वयं को पहचान लेना बुद्धत्व है। शेष सब पराया है। शेष सब संयोग से बनता मिटता है। इसलिए शेष की फिकर नासमझ करते हैं। जो संयोग पर निर्भर है उसकी भी क्या फिकर करनी? ___ थोड़ा समझो। तुम एक गरीब घर में पैदा हुए। तुम्हें ठीक से शिक्षा नहीं मिल सकी, तो कुछ द्वार बंद हो गए संयोग के। तुम एक जंगल में पैदा हुए, एक आदिवासी समाज में पैदा हुए। अब वहां तुम उस आदिवासी समाज में शेक्सपियर न बन सकोगे, न कालिदास बन सकोगे। संयोग की बात है। तुम पूरब में पैदा हुए तो एक संयोग, पश्चिम में पैदा हुए तो दूसरा संयोग। इन संयोगों पर बहुत सी बातें निर्भर हैं—सभी बातें निर्भर हैं—सिर्फ एक को छोड़कर। एक भर अपवाद है। और इसीलिए धर्म उसकी खोज है, जो संयोग के बाहर है। धर्म उसकी खोज है, जो परिस्थिति पर निर्भर नहीं है। धर्म उसकी खोज है, जो किसी चीज पर निर्भर नहीं है। जो परम स्वातंत्र्य का सूत्र है तुम्हारे भीतर, उसकी खोज है।
शेष सब तुम खोजते हो, वह सब संयोग की बात है। और छोटे-छोटे संयोग बड़े महत्वपूर्ण हो जाते हैं। किसी को बचपन में ही चेचक निकल गई और चेहरा कुरूप हो गया। अब इसकी पूरी जिंदगी इस चेचक पर निर्भर होगी। क्योंकि शादी करने में इस व्यक्ति को अड़चन आएगी। इस व्यक्ति को जिंदगी में चलने में हजार तरह की हीनताएं घेरेंगी। यह सब संयोग की ही बात है।
लेकिन, चेहरा सुंदर हो कि कुरूप, काला हो कि गोरा, वह जो भीतर द्रष्टा है,
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