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समझ और समाधि के अंतरसूत्र
न लगती हों, उसका इतना ही अर्थ है कि जड़ें सूख गयीं। अब वहां जीवन नहीं। जीवन छोड़ चुका उसे, उड़ गया।
तुम पूछते हो, 'बुद्ध के देह में जीवित रहते उनका भिक्षु-संघ एकता में रहा।'
नहीं, ज्ञानियों के लिए तो वह अब भी एकता में है। और तुमसे मैं कहता हूं अज्ञानी के लिए वह तब भी एकता में नहीं था जब बुद्ध जीवित थे। तब भी अज्ञानी अपनी तैयारियां कर रहे थे। तभी फिरके बंटने शुरू हो गए थे। बुद्ध के जीते जी अज्ञानियों ने अपने हिसाब बांट लिए थे, अलग-अलग कर लिए थे। बुद्ध के मरने से थोड़े ही अचानक अज्ञान पैदा होता है। अज्ञानी तो पहले भी अज्ञानी था, वह कोई अचानक थोड़े ही अज्ञानी हो गया। और जो अज्ञानी है, बुद्ध के जीवित रहने से थोड़े ही कुछ फर्क पड़ता है ? अज्ञान तो तुम्हें छोड़ना पड़ेगा, बुद्ध क्या कर सकते हैं?
बुद्ध ने कहा है, मार्ग दिखा सकता हूं, चलना तो तुम्हें पड़ेगा। समझा सकता हूं, समझना तो तुम्हें पड़ेगा। अगर तुम न समझने की ही जिद्द किए बैठे हो, अगर समझने के लिए तुम में जरा भी तैयारी नहीं है—तैयारी नहीं दिखाई है—तो बुद्ध लाख सिर पीटते रहें, कोई परिणाम नहीं हो सकता।
तीसरा प्रश्नः
क्या जीवन में सभी कुछ नदी-नाव संयोग है? बुद्ध भी? बुद्धत्व भी?
न ही —बुद्धत्व को छोड़कर सभी कुछ नदी-नाव संयोग है। क्योंकि बुद्धत्व
तुम्हारा स्वभाव है, संयोग नहीं। ऐसा नहीं है कि तुम्हें बुद्ध होना है। तुम बुद्ध हो। बस इतना ही है कि तुम्हें पहचानना है। ऐसा नहीं है कि तुम्हें बुद्धत्व अर्जित करना है। तुमने कभी गंवाया ही नहीं। प्रत्यभिज्ञा करनी है। पहचान करनी है। जो मिला ही है, जागकर देखना है। ___ बुद्धत्व संयोग नहीं है। बुद्धत्व किन्हीं परिस्थितियों पर निर्भर नहीं है। न तुम्हारी साधना पर निर्भर है, याद रखना। यह मत सोचना कि तुम बहुत ध्यान करोगे इसलिए बुद्ध हो जाओगे। बहुत ध्यान, बहुत तपश्चर्या से शायद तुम्हें जागने में आसानी होगी बुद्धत्व के प्रति, लेकिन बुद्ध होने में नहीं। बुद्ध तो तुम थे। गहरी तंद्रा में थे और खर्राटे ले रहे थे, तब भी तुम बुद्ध ही थे। भटक रहे थे योनियों में अनंत योनियों में कीड़े-मकोड़ों की तरह-जी रहे थे कामवासना में, हजार क्रोध और लोभ में, तब भी तुम बुद्ध ही थे। ये सब सपने थे जो तुमने देखे। लेकिन सपनों के पीछे तुम्हारा मूलस्रोत सदा ही शुद्ध था। वह कभी अशुद्ध हुआ नहीं। अशुद्ध होना उसकी प्रकृति नहीं।
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