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एस धम्मो सनंतनो
बिलकुल विपरीत जाने वाली शाखाएं भी-एक पूरब जा रही है, एक पश्चिम जा रही है—फिर भी एक ही तने से जुड़ी होती हैं, विरोध कहां है? और उन दोनों का जीवन-स्रोत एक ही जगह से आता है। एक बुद्ध ही फैलते चले गए सब में। इससे कुछ अड़चन न थी।
लेकिन अज्ञानी अड़चन खड़ी करता है। अज्ञानी की अड़चन ऐसी है कि वह यह भूल ही जाता है कि सभी विरोध अलग-अलग दिशाओं में जाती शाखाएं हैं। एक ही स्रोत से जन्मी हैं।
मैंने सुना है, एक गुरु के दो शिष्य थे। गर्मी की दोपहर थी, गुरु विश्राम कर रहा था, और दोनों उसकी सेवा कर रहे थे। गुरु ने करवट बदली तो दोनों शिष्यों ने आधा-आधा गुरु को बांट रखा था सेवा के लिए, बायां पैर एक ने ले रखा था, दायां पैर एक ने से रखा था-गुरु ने करवट बदली तो बायां पैर दाएं पैर पर पड़ गया। स्वभावतः झंझट खड़ी हो गई।
गुरु तो एक है। शिष्य दो थे। तो उन्होंने हिंदुस्तान-पाकिस्तान बांटा हुआ था। तो जब दाएं पैर पर बायां पैर पड़ा, तो जिसका दायां पैर था उसने कहा; हटा ले अपने बाएं पैर को। मेरे पैर पर पैर! सीमा होती है सहने की। बहुत हो चुका, हटा ले। तो उस दूसरे ने कहा, देखू किसकी हिम्मत है कि मेरे पैर को और कोई हटा दे! सिर कट जाएंगे, मगर मेरा पैर जहां रख गया रख गया। यह कोई साधारण पैर नहीं, अंगद का पैर है। भारी झगड़ा हो गया, दोनों लट्ठ लेकर आ गए।
गुरु यह उपद्रव सुनकर उसकी नींद खुल गई, उसने देखी यह दशा। उसने जब लट्ठ चलने के ही करीब आ गए–लट्ठ चलने वाले थे गुरु पर! क्योंकि जिसका दायां पैर था वह बाएं पैर को तोड़ डालने को तत्पर हो गया था। और जिसका बायां पैर था वह दाएं पैर को तोड़ डालने को तत्पर हो गया था। गुरु ने कहा, जरा रुको, तुम मुझे मार ही डालोगे। ये दोनों पैर मेरे हैं। तुमने विभाजन कैसे किया?
अज्ञानी बांट लेता है और भूल ही जाता है। भूल ही जाता है कि जो उसने बांटा है वे एक ही व्यक्ति के पैर हैं, या एक ही वृक्ष की शाखाएं हैं। अज्ञानी ने उपद्रव खड़ा किया। अज्ञानी लड़े। एक-दूसरे का विरोध किया। एक-दूसरे का खंडन किया। एक-दूसरे को नष्ट करने की चेष्टा की। जब संप्रदाय अज्ञानी के हाथ में पड़ता है तब खतरा शुरू होता है।
ज्ञानी संप्रदाय को बनाता है, क्योंकि धर्म की शाखाएं-प्रशाखाएं पैदा होती हैं। जितना जीवित धर्म, उतनी शाखाएं-प्रशाखाएं। दुनिया से संप्रदाय थोड़े ही मिटाने हैं, अज्ञानी मिटाने हैं। जिस दिन संप्रदाय मिट जाएंगे, दुनिया बड़ी बेरौनक हो जाएगी। उस दिन गुरु बिना पैर के होगा। उसको फिर, जैसे भिखमंगों को ठेले पर रखकर चलाना पड़ता है, ऐसे चलाना पड़ेगा। फिर वृक्ष बिना शाखाओं के होगा। न पक्षी बसेरा करेंगे, न राहगीर छाया लेंगे। और जिस वृक्ष में पत्ते न लगते हों, शाखाएं
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