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________________ समझ और समाधि के अंतरसूत्र नग्न हैं, और नग्न में भी उनका बड़ा श्रृंगार है। इसमें कुछ बड़ा फासला नहीं है। उनकी नग्नता ही श्रृंगार है, अब और क्या सजाना है? उनको और सजाना तो ऐसे ही है जैसे कोई सांप पर पैर चिपकाए। वह सांप अकेला बिना पैर के ही खूब चलता था। अब तुम और पैर चिपकाकर उसे खराब मत करो। यह तो उन पर और श्रृंगार करना ऐसे ही है जैसे कोई मोर को और रंगों से पोत दे। मोर वैसे ही काफी रंगीन था, अब तुम कृपा करके रंग खराब मत करो। ___ महावीर की नग्नता में ही खूब श्रृंगार है। उन जैसी सुंदर नग्नता कभी प्रगट हुई? पर फिर तुम्हारी मौज है। तुम्हारा मन नहीं मानता—इसलिए नहीं कि महावीर में कुछ कमी है—तुम्हारा मन बिना किए कुछ नहीं मानता। तुम कुछ करना चाहते हो। करो भी क्या? महावीर जैसे व्यक्ति के सामने एकदम असमर्थ हो जाते हो। सुंदर कपड़े पहनाते हो, सुंदर आभूषण लगाते हो, यह तुम्हारी राहत है। इससे महावीर का कुछ लेना-देना नहीं। तुम्हारे सब वस्त्रों के पीछे भी वे अपनी नग्नता में खड़े हैं, नग्न ही हैं। ऐसे छोटे-छोटे फासले हैं। .... दिगंबर कहते हैं कि उनकी कोई शादी नहीं हुई। श्वेतांबर कहते हैं, शादी हुई। क्या फर्क पड़ता है ? दिगंबर कहते हैं, उनका कोई बच्चा नहीं हुआ-जब शादी ही नहीं हुई तो बच्चा कैसे हो? श्वेतांबर कहते हैं, उनकी एक लड़की थी। पर क्या फर्क पड़ता है? महावीर में इससे क्या फर्क पड़ता है? शादी हुई कि न हुई? ये तो फिजूल की विस्तार की बातें हैं। महावीर के होने का इससे क्या लेना-देना है? शादी हुई हो तो ठीक, न हुई हो तो ठीक। जिसको जैसी मौज हो वैसी कहानी बना ले। लेकिन कोई बहुत बड़ा विस्तार नहीं हुआ। जीसस की भी दो शाखाएं फूटकर रह गयीं। प्रोटेस्टेंट और केथोलिक। कोई बड़ा विस्तार नहीं हुआ। बुद्ध अनूठे हैं, अद्वितीय हैं। सैकड़ों शाखाएं हुईं। और प्रत्येक शाखा इतनी विराट थी कि उसमें से भी प्रशाखाएं हुईं। कहते हैं, जितने दर्शन के मार्ग अकेले बुद्ध ने खोले उतने मनुष्य-जाति में किसी व्यक्ति ने नहीं खोले। बुद्ध अकेले समस्त प्रकार के दर्शनों का स्रोत बन गए। ऐसी कोई दार्शनिक परंपरा नहीं है जगत में जिसके समतुल परंपरा बुद्ध-धर्म में न हो। __ अगर तुम बुद्ध-धर्म का पूरा इतिहास समझ लो, तो बाकी सब धर्मों का इतिहास छोड़ भी दो तो कुछ हर्जा न होगा। क्योंकि सारे जगत में जो भी कहीं हुआ है, जो विचार कहीं भी जन्मा है, वह विचार बुद्ध में भी जन्मा है। बुद्ध अकेले बड़े विराट वृक्ष हैं। ___यह तो सौंदर्य की बात है। यह तो अहोभाव और उत्सव की बात है। इसमें कुछ चिंता का कारण नहीं है। यह तो इतना ही बताता है कि बुद्ध में बड़ी संभावना थी। ज्ञानी ने तो उस संभावना का उपयोग किया। उसमें कोई झगड़ा न था। 135
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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