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________________ एस धम्मो सनंतनो मौजूदगी का उपयोग कर लो। इस मौजूदगी को पी लो। इस मौजूदगी को तुम्हारे रग-रेशे में उतर जाने दो। व्यर्थ के ऊहापोह में मत पड़ो। मदरसे तक ही थीं बहस आराइयां पाठशाला तक तर्क, तर्कजाल, प्रश्न और प्रश्नों के विस्तार। मदरसे तक ही थीं बहस आराइयां चुप लगी जब बात की तह पा गए तो जो मैं कहता हूं उसको तुम तर्क मत बनाओ, अन्यथा तुम चूके। तब तुम किसी दिन पछताओगे कि इतने करीब थे और चक गए। और कभी-कभी ऐसा हआ है कि सोचने वालों ने गंवा दिया है और न सोचने वालों ने पा लिया है। कभी-कभी क्या, हमेशा ही ऐसा हुआ है। जो मैं कह रहा हूं, वह इसीलिए कह रहा हूं ताकि चुप लग जाए, और तुम बात की तह पा जाओ। तुम बात में से बात निकाल लेते हो। बात की तह नहीं पाते। एक बात से तुम दस दूसरी बातों पर निकल जाते हो। मैं करता हूं इशारा चांद की तरफ, तुम अंगुली पकड़ लेते हो। तुम अंगुली के संबंध में पूछने लगते हो, तुम चांद की बात ही भूल जाते हो। कहीं ऐसा न हो कि किसी दिन तुम्हें कहना पड़े थी न आजादे-फना किश्ती-ए-दिले-नाखुदा मौजे-तूफां से बची तो नो-साहिल हो गई किसी तरह तूफान से बचकर आ भी गए तो किनारे से टकरा गए। थी न आजादे-फना किश्ती-ए-दिले-नाखदा मौजे-तूफां से बची तो नो-साहिल हो गई कहीं ऐसा न हो कि यहां मेरे किनारे पर आकर भी डूब जाओ। कोई एजाजे-सफर था या फरेबे-चश्मे-शौक सामने आकर निहां आंखों से मंजिल हो गई कहीं ऐसा न हो कि मंजिल सामने आ गई हो और फिर भी तुम चूक जाओ। उस दिन बुद्ध के सामने बैठे लोग चूक गए। सामने आकर निहां आंखों से मंजिल हो गई आ गई थी सामने मंजिल, लेकिन जिसे पहुंचना है अगर वही तैयार न हो, तो मंजिल भी क्या करे? सामने भी आ जाए तो भी तुम चूक जाओगे। क्योंकि सवाल मंजिल का नहीं, तुम्हारा है। व्यर्थ की बातों में मत पड़ो। और यदि ऐसा होता, तो कैसा होता, यह तो पूछो ही मत। इसकी तुम्हें व्यर्थता नहीं दिखाई पड़ती कि यदि रावण सीता को न चुराता तो रामायण का क्या होता? अब इसका कौन उत्तर दे? इसका कौन उत्तर दे और उत्तर का क्या अर्थ है? जो हो गया, हो गया। उससे अन्यथा नहीं हो सकता था। अब तुम उसमें से और 132
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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