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एस धम्मो सनंतनो
होता। बुद्ध न देते तो भी गया होता। छोड़ दो फिकर! हंसता नहीं, बुद्ध न भी देते फूल, तो भी मैं कहता हूं, उसी के पास गया होता। फूल खुद चला गया होता। कोई बुद्ध को देने की जरूरत भी न थी। ___ घटना को समझने की कोशिश करो, ब्यौरे की व्यर्थ बकवास में मत पड़ो। घटना सीधी है कि बुद्ध चुप रहे, उस चुप्पी को कोई और न समझ पाया। चुप्पी को समझने के लिए तुम्हें भी चुप होना जरूरी है। जिस भाषा को समझना, हो उस भाषा को जानना जरूरी है। मैं हिंदी बोल रहा हूं, तो हिंदी जानना जरूरी है। मैं चीनी बोलूं, तो चीनी जानना जरूरी है, तभी समझ सकोगे।
बुद्ध उस दिन मौन बोले, मौन की भाषा बोले, जो मौन का रस जानता था वही समझा। जो मौन का रस नहीं जानते थे, उन्होंने इस मौन को भी अपने चिंतन का व्यापार बना लिया। वे सोचने लगे, बुद्ध मौन क्यों बैठे हैं? अभागे लोग! जब बुद्ध मौन थे तब तुम चुप हो गए होते, तो फूल उन्हें भी मिल सकता था। लेकिन वे सोचने लगे कि बुद्ध मौन क्यों बैठे हैं? कि बुद्ध हाथ में फूल क्यों लिए हैं? जिसने सोचा, उसने गंवाया।
बुद्धों के पास सोचने से संबंध नहीं जुड़ता। बुद्धों के पास तो न सोचने की कला आनी चाहिए। महाकाश्यप चुप रहा। उसने बस भर आंख देखा। उसने सोचा नहीं। कौन फिकर करे? इतना अप्रतिम सौंदर्य उस दिन प्रगट हुआ था! ऐसा सूरज उगा था जैसा कभी-कभी सदियों में उगता है। बुद्ध उस दिन सब द्वार-दरवाजे अपने मंदिर के खोलकर बैठे थे। निमंत्रण दिया था कि जिसे भी आना हो आ जाए। परमात्मा द्वार पर आकर खड़ा था। दस्तक दे रहा था। तुम सोचने लगे, तुम विचार करने लगे, ऐसा क्यों? वैसा क्यों? क्यों बुद्ध चुप बैठे हैं? पहले क्यों कभी नहीं बैठे?
विचारक चूक गए। महाकाश्यप कोई विचारक न था। वह सिर्फ देखता रहा बुद्ध को। जैसे बुद्ध फूल को देखते रहे, ऐसा महाकाश्यप बुद्ध को देखता रहा। वही तो इशारा था कि जैसे मैं देख रहा हूं फूल को-मात्र द्रष्टा हूं-ऐसे ही तुम भी द्रष्टा हो जाओ आज। हो चुकी बहुत बातें दर्शन की, अब द्रष्टा हो जाओ। दर्शन की बात कब तक चलाए रखोगे? हो चुकी चर्चा भोजन की, अब भोजन करो। अब स्वाद लो। बुद्ध ने थाली सजा दी थी अपनी। तुम सोचने लगे भोजन के संबंध में, बुद्ध भोजन रखे सामने बैठे थे। __जैसे बुद्ध फूल को देख रहे थे, वैसा ही महाकाश्यप बुद्ध के फूल को देखने लगा। बुद्ध ने एक फूल देखा, महाकाश्यप ने दो फूल देखे। दो फूलों को एक साथ देखा। उन दोनों फूलों का तारतम्य देखा, संगीत देखा, लयबद्धता देखी। एक अपूर्व छंद का उसे अनुभव होने लगा। रुकता भी महाकाश्यप कैसे बिना हंसे!
क्यों हंसा महाकाश्यप? हंसा लोगों पर, जो कि सोच में पड़ गए हैं। मंदिर सामने खड़ा है और वे मंदिर की खोज कर रहे हैं। सूरज उग चुका है, वे आंख बंद
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