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________________ एस धम्मो सनंतनो चल देता है, ऐसे जिंदगी को बिना कोई हानि पहुंचाए—यही अहिंसा का सूत्र है। अहिंसा का सूत्र इतना ही है कि रस लेने के तुम हकदार हो, लेकिन किसी को हानि पहुंचाने के नहीं। फूल को तोड़कर भी भोगा जा सकता है। वह भी कोई भोगना हुआ! भौंरा आता है फूल पर चुपचाप, गुनगुनाता है गीत, रिझा लेता है फूल को, रस ले लेता है, उड़ जाता है। तोड़ता नहीं, मिटाता नहीं। भौरे की तरह मुक्त, भ्रमर की तरह मुक्त, बुद्ध कहते हैं, जीवन के गांव में तुम जीओ जरूर, लेकिन आबद्ध मत हो जाना, बंद मत हो जाना। हमारी हालत तो बड़ी उलटी है, इससे ठीक उलटी। बुद्ध कहते हैं, दुनिया में रहना, लेकिन दुनिया के मत हो जाना। बुद्ध कहते हैं, दुनिया में रहना, लेकिन दुनिया तुममें न रहे। हमारी हालत इससे ठीक उलटी है। बाद मरने के भी दिल लाखों तरह के गम में है बाद मरने के भी दिल लाखों तरह के गम में है । हम नहीं दुनिया में लेकिन एक दुनिया हम में है मर भी जाएं हम तो भी गम नहीं मरते। कब्र में भी तुम पड़े रहोगे हम नहीं दुनिया में लेकिन एक दुनिया हम में है। तब भी तुम सपने देखोगे। तब भी तुम उसी दुनिया के सपने देखोगे जिससे तुमने कुछ कभी पाया नहीं। तुम्हारी आंखें फिर भी उसी अंधेरे में खोई रहेंगी, जहां कभी रोशनी की किरण न मिली। तो एक तो है ढंग सांसारिक व्यक्ति का, वह मर भी जाए, तो भी दुनिया उसके भीतर से नहीं हटती। और एक है संन्यासी का ढंग, वह जीता भी है, तो भी दुनिया उसके भीतर नहीं होती। ___ यह जीवन के विराट नगर के संबंध में भी सही है, और यही बुद्ध ने अपने भिक्षुओं के लिए कहा कि गांव-गांव जब तुम भीख भी मांगने जाओ-भिक्षाटन भी करो-तो चुपचाप मांग लेना, ऐसे ही जैसे भौंरा फूलों से मांग लेता है, और विदा हो जाना। ले लेना, जो मिलता हो। धन्यवाद दे देना, जहां से मिले। अनुग्रहपूर्वक स्वीकार कर लेना। न मिले, तो दुखी मत होना। क्योंकि मिलना चाहिए, ऐसी कोई शर्त कहां? मिल जाए, धन्यभाग! न मिले, संतोष! और जो न मिलने में संतुष्ट है, उसे मिल ही जाता है। लेकिन हमारी स्थिति ऐसी है कि मिल जाने पर भी संतोष नहीं है। तो मिलकर भी नहीं मिल पाता। हम दरिद्र के दरिद्र ही रह जाते हैं। जीवन से बहुत कुछ पाया जा सकता है। सपने से भी सीखा जा सकता है। और मृग-मरीचिकाएं भी बुद्धत्व का आधार बन जाती हैं। भ्रम से भी जागने की कला उपलब्ध हो जाती है। ___ 'जैसे भ्रमर फूल के वर्ण और गंध को हानि पहुंचाए बिना रस को लेकर चल देता है, वैसे ही मुनि गांव में भिक्षाटन करे।' न तो संसार का सवाल है। न संसार को छोड़ने का सवाल है। क्योंकि जो 122
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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