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________________ एस धम्मो सनंतनो थोड़े ही कि कभी सत्तर साल के बाद घटेगी। रोज-रोज घटती है, सत्तर साल में पूरी हो जाती है। जन्म के साथ ही मौत का सिलसिला शुरू होता है, मरने के साथ पूरा होता है। लंबी प्रक्रिया है। मृत्यु कोई घटना नहीं है, प्रक्रिया है। पूरे जीवन पर फैली है। जैसे झील पर लहरें फैली हों, ऐसे जीवन पर मौत फैली है। अगर तुम मौत को छिपाते हो, ढांकते हो, बचते हो, तो तुम जीवन के सत्य को न देख पाओगे। जिसे तुम जीवन कहते हो इस जीवन का सत्य तो मृत्यु है। सूरज का उभरना याद रहा और दिन का ढलना भूल गए सूरज उग चुका है, ढलने में ज्यादा देर न लगेगी। जो उग चुका, वह ढल ही चुका। जो उग गया है, वह ढलने के मार्ग पर है। सुबह का सूरज सांझ का सूरज बनने की चेष्टा में संलग्न है। सांझ दूर नहीं है, अगर सुबह हो गई। जब सुबह ही हो गई, तो सांझ कितनी दूर हो सकती है! जिसको तुम भर जवानी कहते हो, वह केवल आधे दिन का पूरा हो जाना है-आधी सांझ का आ जाना है। जवानी आधी मौत है। लेकिन कौन याद रखता है? जो याद रख सके, वही शिष्य है। मौत ही इंसान की दुश्मन नहीं जिंदगी भी जान लेकर जाएगी मौत ही इंसान की दुश्मन नहीं, जिंदगी भी जान लेकर जाएगी-मौत को दुश्मन मत समझना। जिसे तुम जिंदगी कहते हो वह मौत ही है, वह भी जान लेकर जाएगी। ___'फूलों को चुनने वाले, मोहित मन वाले पुरुष को मृत्यु उसी तरह उठा ले जाती है, जिस तरह सोए हुए गांव को बढ़ी हुई बाढ़।' तू हविश में दुनिया की जिंदगी मिटा बैठा भूल हो गई गाफिल जिंदगी ही दुनिया थी तू हविश में दुनिया की जिंदगी मिटा बैठा-दुनिया को पाने की चेष्टा में वह जो जीवन था उसे तूने मिटा दिया। और दुनिया को पाने की चेष्टा को ही तूने जिंदगी समझी। वह जिंदगी न थी। भूल हो गई गाफिल-सोए हुए आदमी, भूल हो गई। जिंदगी ही दुनिया थी। इसे थोड़ा समझ लो। जिसे तुम दुनिया कहते हो, तुम्हारे बाहर जो फैलाव है, उसे जिंदगी मत समझ लेना। अगर उस बाहर की दुनिया को ही इकट्ठा करने में लगे रहे, तो असली जिंदगी गंवा दोगे। पीछे पछताओगे। समय बीत जाएगा और रोओगे। फिर शायद कुछ कर भी न सकोगे। अभी कुछ किया जा सकता है। मरते क्षण में शायद अधिकतम लोगों को यह समझ आती है तू हविश में दुनिया की जिंदगी गंवा बैठा मरते वक्त अधिक लोगों को यह खयाल आना शुरू हो जाता है भूल हो गई गाफिल जिंदगी ही दुनिया थी लेकिन तब समय नहीं बचता। मरते-मरते दिखाई पड़ना शुरू होता है कि महल 120
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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