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________________ केवल शिष्य जीतेगा मित्र में कुछ पाया ? सगे- साथी में कुछ पाया ? या सिर्फ घूंघट था । नहीं मिलता है, कोई नहीं मिलता है वहां; लेकिन मन की आशा कहती है, यहां नहीं मिला तो कहीं और मिल जाएगा। इस झरने में पानी सिद्ध नहीं हुआ, फिर दूर और झरना दिखाई पड़ने लगता है। तुम कब जागोगे इस सत्य से कि झरने तुम कल्पित करते हो, कहीं कोई नहीं है! तुम्हारे अतिरिक्त सब अयथार्थ है । तुम्हारे अतिरिक्त सब माया है। 'यमराज की दृष्टि से बचकर आगे बढ़ो।' अगर जीवन को सचमुच पाना है तो मौत से... जहां-जहां मौत हो वहां-वहां जीवन नहीं है, इसको तुम समझ लो । जहां-जहां परिवर्तन हो, वहां शाश्वत नहीं है। और जहां-जहां क्षणभंगुर हो वहां सनातन नहीं है । और जहां-जहां चीजें बदलती हों, वहां समय को मत गंवाना। उसको खोजो जो कभी नहीं बदलता है । उस न बदलने को खोज लेने की कला का नाम धर्म है। एस धम्मो सनंतनो । 1 'विषयरूपी फूलों को चुनने वाले, मोहित मन वाले पुरुष को मृत्यु उसी तरह उठा ले जाती है, जिस तरह सोए हुए गांव को बढ़ी हुई बाढ़ ।' जैसे सोए हुए गांव में अचानक नदी में बाढ़ आ जाए और लोग सोए-सोए ही बह जाते हैं, ऐसे ही विषयरूपी फूलों को चुनने वाले, मोहित मन वाले पुरुष को मृत्यु उठा ले जाती है । सोए ही सोए बाढ़ आ जाती है और जिंदगी विदा हो जाती है। तुम सपने ही देखते रहते हो और बाढ़ आ जाती है। सारी कामवासना स्वप्न देखने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है । ये ऐश के बंदे सोते रहे फिर जागे भी तो क्या जागे सूरज का उभरना याद रहा और दिन का ढलना भूल गए एक तो जागते ही नहीं, सोए ही रहकर बिता देते हैं । और अगर कभी कोई सोचता भी है कि जाग गया, तो सोचता ही है कि जाग गया। वह भी जागना जैसे सपने में ही जागना है। सूरज का उभरना याद रहा और दिन का ढलना भूल गए तो लोग अपने जन्मदिन को याद रखते हैं। मृत्युदिन की कौन चर्चा करता है ? लोग जीवन पर नजर रखते हैं। मौत ! मौत की बात ही करनी बेहूदी मालूम पड़ती है। अगर किसी से पूछो कि कब मरोगे, तो वह नाराज हो जाता है। मरोगे कि नहीं ? तो वह फिर दुबारा तुम्हें कभी मिलेगा ही नहीं। वह तुम्हें दुश्मन समझ लेगा। पूछा कुछ गलत न था । जो होने ही वाला था वही पूछा था। लेकिन मौत की लोग बात भी नहीं करना चाहते। बात से भी भय लगता है। फिर भी मौत तो है । उस तथ्य को इनकार न कर सकोगे। किसी भांति उस तथ्य को स्वीकार करो तो शायद इस जीवन से जागने की क्षमता आ जाए। जिसने भी मृत्यु को स्वीकार किया वह देखेगा, मृत्यु कभी आती है ऐसा थोड़े ही, रोज हम मर रहे हैं। अभी आती है। अभी आ रही है, अभी घट रही है । ऐसा 119
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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