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एस धम्मो सनंतनो
जो कुछ है सब खयाल की मुट्ठी में बंद है जितने दूर रहो, उतना ही वस्तुओं से संपर्क नहीं होता, सिर्फ खयालों से संपर्क होता है। जितने पास आओ, जीवन का यथार्थ दिखाई पड़ता है, खयाल टूटने लगते हैं। और जिसने भी जीवन का यथार्थ देखा, वह घबड़ा गया। वह भयभीत हो गया। क्योंकि वहां जीवन के घर में छिपी मौत पाई, फूल में छिपे कांटे पाए। सुंदर सपनों के पीछे सिवाय पत्थरों के कुछ भी नहीं था। पानी की झाग थी, कि मरुस्थल में देखे गए जल के झरने थे। दूर से बड़े मनमोहक थे, पास आकर थे ही नहीं। . और यह सभी को अनुभव होता है, लेकिन फिर भी तुम न मालूम किसका इंतजार कर रहे हो? न किसी ने वादा किया है, न तुम्हें भरोसा है कि कोई आएगा, उम्मीद भी नहीं है—मगर शायद तुम सोचते हो, और करें भी क्या? अगर इंतजार न करें, तो और करें भी क्या?
बुद्धपुरुष तुम्हें बुलाते हैं कि तुम गलत राह पर बैठे हो और जिसकी तुम प्रतीक्षा करते हो वह वहां से गुजरता ही नहीं। और भी राहें हैं। प्रतीक्षा करने के लिए और भी प्रतीक्षालय हैं। अगर प्रतीक्षा ही करनी है तो थोड़ा भीतर की तरफ चलो। जितने तुम बाहर गए हो उतने ही तुम ने झाग और फेन के बुलबुले पाए हैं। थोड़े भीतर की तरफ आओ और तुम पाओगे उतना ही यथार्थ प्रगट होने लगा। जितने तुम भीतर आओगे उतना सत्य, जितने तुम बाहर जाओगे उतना असत्य। जिस दिन तुम बिलकुल अपने केंद्र पर खड़े हो जाओगे, उस दिन सत्य अपने पूरे राज खोल देता है। उस दिन सारे पर्दे, सारे बूंघट उठ जाते हैं।
'इस शरीर को फेन के समान जान; और इसकी मरीचिका के समान प्रकृति को पहचान; मार के पुष्पजाल को काट।'
बुद्ध कहते हैं, वासना ने बड़े फूलों का जाल फैलाया है। 'मार के पुष्पजाल को काट।' ।
सुनते हैं चमन को माली ने फूलों का कफन पहनाया है मार का पुष्पजाल। उन फूलों के पीछे कुछ भी नहीं है। धोखे की टट्टी है। पीछे कुछ भी नहीं है। सारा सौंदर्य पर्दे में है। खाली घूघट है, भीतर कोई चेहरा नहीं है। लेकिन घूघट को जब तक तुम खोलोगे न और भीतर की रिक्तता का पता न चलेगा, तब तक तुम जागोगे न। कई बार तुमने घूघट भी खोल लिए हैं। एक बूंघट के भीतर तुमने कोई न पाया, तो भी तुम्हें समझ नहीं आती। तब तुम दूसरा बूंघट खोलने में लग जाते हो। एक मुट्ठी झाग झाग सिद्ध हो गई तो मन कहे चला जाता है, सारी ही झाग थोड़ी झाग होगी। एक बूंघट व्यर्थ हुआ, दूसरे बूंघट में खोज लेंगे। ऐसा जन्मों-जन्मों से धूंघट उठाने का क्रम चल रहा है। किसी बूंघट में कभी किसी को नहीं पाया। सब चूंघट खाली थे।
तुमने कभी किसी में किसी को पाया? पति में कुछ पाया? पत्नी में कुछ पाया?
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