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________________ एस धम्मो सनंतनो आंख से उसकी आंसू गिरने लगे। उस फकीर ने कहा दूसरे से कि तेरा क्या पाप है ? दूसरे ने मुस्कुराते हुए कहा, ऐसा कुछ खास नहीं। कोई बड़े पाप मैंने नहीं किए हैं। ऐसे ही छोटे-छोटे, जिनका कोई हिसाब भी नहीं, और कोई उनसे मैं दबा भी नहीं जा रहा हूं। मित्र आता था, इसलिए मैं भी साथ चला आया । और अगर इसके बड़ों से छुटकारा मिल सकता है, तो मेरे छोटे-छोटे पापों का भी आशीर्वाद दो कि छुटकारा हो जाए।. उस फकीर ने कहा, ऐसा करो, तुम दोनों बाहर जाओ। और उस पहले युवक से कहा कि तू अपने पाप की दृष्टि से उतने ही वजन का एक पत्थर उठा ला। और दूसरे से कहा कि तू भी, तूने जो छोटे-छोटे पाप किए हैं कंकड़-पत्थर उसी हिसाब की संख्या से भर ला। पहला तो एक बड़ी चट्टान उठाकर लाया । पसीने से तरबतर हो गया, उसे लाना भी मुश्किल था, हांफने लगा। दूसरा झोली भर लाया, छोटे-छोटे कंकड़-पत्थर बीनकर । से जब वे अंदर आ गए, उस फकीर ने कहा, अब तुम एक काम करो। जिस जगह तुम यह बड़ा पत्थर उठा लाए हो, वहीं रख आओ। और उस दूसरे से भी कहा कि तू ये जो छोटे-छोटे कंकड़-पत्थर बीन लाया, जहां-जहां से उठाए हैं वहीं-वहीं वापस रख आ। उसने कहा, यह तो झंझट हो गई। जिसने बड़ा पाप किया है यह तो खैर रख आएगा, मैं कहां रखने जाऊंगा ? अब तो याद भी करना मुश्किल है कि कौन सा पत्थर मैंने कहां से उठाया था। सैकड़ों कंकड़-पत्थर बीन लाया हूं। . उस फकीर ने कहा, पाप बड़ा भी हो, लेकिन अगर उसकी पीड़ा हो, तो प्रायश्चित्त का उपाय है। पाप छोटा भी हो और उसकी पीड़ा न हो, तो प्रायश्चित्त का उपाय नहीं है। और जो तुम्हारे पत्थर के संबंध में तुम्हारी स्थिति है, वही तुम्हारे पापों के संबंध में भी स्थिति है। जिसका दीया जला हुआ है, वह न तो बड़े करता है, न छोटे करता है । जिनके दीए अभी जले हुए नहीं हैं, वे बड़े करने से भला डरते हों, छोटे-छोटे तो मजे से करते रहते हैं। छोटे-छोटे का तो पता ही कहां चलता है! किसी आदमी से जरा सा झूठ बोल दिया, कई बार तो तुम ऐसे झूठ बोलते हो कि तुम्हें पता ही नहीं चलता कि तुमने झूठ भी बोला। कई बार तो तुम्हें फिर जीवन में कभी याद भी नहीं आता उसका। लेकिन वह सब इकट्ठा होता चला जाता है। छोटे-छोटे पत्थर इकट्ठे होकर भी बड़ी-बड़ी चट्टानों से ज्यादा बोझिल हो सकते हैं। असली सवाल छोटे और बड़े का नहीं है । और जिन्होंने जागकर देखा है, उनका तो कहना यह है कि पाप छोटे-बड़े होते ही नहीं । पाप यानी पाप । छोटा-बड़ा कैसे ? एक आदमी ने दो पैसे की चोरी की। क्या छोटा पाप है ? और एक आदमी ने दो लाख की चोरी की। क्या बड़ा पाप है ? थोड़ा सोचो। चोरी चोरी है। दो पैसे की भी उतनी ही चोरी है, जितनी दो लाख 114
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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