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________________ एस धम्मो सनंतनो भी खोजने निकल पड़े हो। नहीं, ऐसे खोज नहीं होती सत्य की। शिष्य होने से खोज होती है। पहले तो उधार ज्ञान छोड़ देना जरूरी है। उधार ज्ञान छोड़ते ही तुम ऐसे शांत और पवित्र हो जाते हो, क्वांरापन उतर आता है, सारी गंदगी हट जाती है। 'कौन जीतेगा? कौन कुशल पुरुष फूल की भांति सुदर्शित धर्मपथ को चुनेगा?' 'शिष्य इस पृथ्वी और देवताओं सहित इस यमलोक को जीतेगा।' . मृत्यु को भी जीत लेगा। लेकिन जीतने की कला है, जानने की भ्रांति को छोड़ देना। पांडित्य को छोड़ते ही जीवन अपने रंग खोलने शुरू कर देता है। पांडित्य जैसे आंखों से बंधे पत्थर हैं, जिनकी वजह से पलकें खुल नहीं पातीं, बोझिल हो गई हैं। पांडित्य के हटते ही तुम फिर छोटे बच्चे की भांति हो जाते हो। शिष्य यानी फिर से तुम्हारा बालपन लौटा। जैसे छोटा बच्चा देखता है जगत को, बिना जानकारी के। गुलाब के फूल को छोटा बच्चा भी देखता है, तुम भी देखते हो। तुम जब देखते हो तब तुम्हारे भीतर एक शब्द बनता है-गुलाब का फूल। या एक शब्द बनता है कि-हां, सुंदर है। या तुलना उठती है कि पहले देखे थे फूल, उतना ही सुंदर है, ज्यादा है, या कम है। बात खतम हो जाती है। थोड़े से शब्दों का भीतर शोरगुल होता है, और उन शब्दों के शोरगुल में जीवित फूल खो जाता है। एक छोटा बच्चा भी गुलाब के फूल को देखता है। अभी उसे पता ही नहीं कि यह गुलाब है, कि कमल है, कि चमेली, कि जूही। अभी नाम उसे याद नहीं। अभी ज्ञान की उस पर कृपा नहीं हुई। अभी शिक्षकों ने उसे बिगाड़ा नहीं। अभी सौभाग्यशाली है, शिक्षा का जहर उस पर गिरा नहीं। अभी वह सिर्फ देखता है। अभी तुलना भी नहीं उठती। क्योंकि तुलना के लिए भी नाम सीख लेना जरूरी है। अतीत में भी उसने फूल देखे होंगे, उनको फूल भी नहीं कह सकता। रंगों का एक जागता हुआ अनुभव था। रंग भी नहीं कह सकता। शब्द तो उसके पास नहीं हैं। सीधा फूल को देखता है, बीच में कोई दीवाल खडी नहीं होती. कोई शब्द जाल नहीं बनता. कोई तुलना नहीं उठती। सीधे फूल से हृदय से हृदय का मिलन होता है। फूल के साथ एक तादात्म्य बनता है। फूल में डूबता है, फूल उसमें डूबता है। छोटा बच्चा एक डुबकी लगा लेता है फूल के अस्तित्व में। फूल अपने सारे सौंदर्य को उसके चारों तरफ बिखरा देता है। अपनी सारी सुगंध लुटा देता है। छोटे बच्चे का जो अनुभव है गुलाब के फूल के पास, वह तुम लाख तरसो, तब तक तुम्हें न हो सकेगा जब तक तुम फिर से बच्चे न हो जाओ। जीसस ने कहा है, मेरे प्रभु के राज्य के वे ही अधिकारी होंगे जो छोटे बच्चों की भांति हैं। छोटे-छोटे बच्चों की भांति सरल हैं। शिष्य का यही अर्थ है कि जो फिर से सीखने को तैयार है। जो कहता है, अब तक जो सीखा था, बेकार पाया। अब मैं फिर से द्वार पर खड़ा हूं अपने हृदय की 112
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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