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________________ केवल शिष्य जीतेगा मिलेगा? जब सवाल ही अभी अपने अंतरतम से नहीं उठा है, तो जवाब अंतरतम तक कैसे जाएगा? ___ एक तो जिज्ञासा है जो बुद्धि की खुजलाहट जैसी है, कुतुहल जैसी है। पछ लिया, चलते-चलते। कोई जीवन दांव पर नहीं लगा है। और एक जिज्ञासा है जिसको हमने मुमुक्षा कहा है। जीवन दांव पर लगा है। यह कोई सवाल ऐसा ही नहीं है, कि चलते-चलते पूछ लिया। इसके उत्तर पर निर्भर करेगा जीवन का सारा ढंग। इसके उत्तर पर निर्भर करेगा कि मैं जीऊं या मरूं? इसके उत्तर पर निर्भर करेगा कि जीवन जीने योग्य है या व्यर्थ है? जहां सब दांव पर लगा है। सारिपुत्र ने कहा, अब में तभी पूछूगा जब मेरे अंतरतम का प्रश्न आएगा। मुझे शास्त्रों से मुक्त करें, भगवान ! बुद्ध ने कहा, तू समझ गया, तू मुक्त हो गया। शास्त्र थोड़े ही तुझे पकड़े हुए हैं, तूने ही पकड़ा था। तू समझ गया, तूने छोड़ दिया। सारिपुत्र को बुद्ध ने शिष्य की तरह स्वीकार कर लिया। ___कहते हैं, सारिपुत्र ने फिर कभी सवाल न पूछे, वर्षों तक। और बुद्ध ने एक दिन सारिपुत्र को पूछा कि तू पूछता नहीं। तू जब आया था, बड़े सवाल लेकर आया था। वह सवाल तो तुझसे छीन लिए गए थे। तूने कहा था, अब जब मेरा सवाल उठेगा, तब पूछंगा। तूने पूछा नहीं। सारिपुत्र ने कहा, अचंभा है। पराए सवाल थे, बहुत थे। उत्तर भी बहुत मिल गए थे, फिर भी उत्तर मिलता नहीं था। क्योंकि अपना सवाल न था। प्राणों की कोई हूक न थी, कोई प्यास न थी। जैसे बिन प्यासे आदमी को पानी पिलाए जाओ। उलटी हो सकती है, तृप्ति थोड़े ही होगी। फिर उनको छोड़ दिया तो बड़ी हैरानी हुई। प्रश्न उठा ही नहीं और उत्तर मिल गया। जिसने अपने भीतर उतरने की थोड़ी सी भी शुरुआत की, उसके प्रश्न खोते चले जाते हैं। अंतरतम में खड़े होकर, जहां से प्रश्न उठना चाहिए वहीं से जवाब उठ आता है। हर अस्तित्वगत प्रश्न अपना उत्तर अपने भीतर लिए है। प्रश्न तो बीज है। उसी बीज से फूटता है अंकुर, उत्तर प्रगट हो जाते हैं। तुम्हें तुम्हारे जीवन की समस्या मालूम पड़ती है समस्या की तरह, क्योंकि वह समस्या भी तुमने उधार ही बना ली है। किसी और ने तुमसे कह दिया है। और किसी और की मानकर तुम चल भी पड़े हो। किसी और ने तुम्हें समझा दिया है कि तुम बहुत प्यासे हो, पानी को खोजो। मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, ईश्वर को खोजना है। मैं उनकी तरफ देखता हूं-किसलिए खोजना है? ईश्वर ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? जरूरी खोजना है? निश्चित ही खोजना है? जीवन को दांव पर लगाने की तैयारी है? वे कहते हैं, नहीं, ऐसा कुछ नहीं। अगर मिल जाए! वैसे तो हमें पक्का भी नहीं कि है भी या नहीं। मैं उनसे पूछता हूं, तुम्हें ठीक-ठीक पक्का है कि तुम खोजने ही निकले हो? वे कहते हैं, वह भी कुछ साफ नहीं, धुंधला-धुंधला है। किसलिए खोज रहे हो ईश्वर को? सुन लिया है शब्द। शब्द पकड़ गया मन में। कोई और लोग भी खोज रहे हैं, तुम 111
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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